भरत नायक "बाबूजी

चाणक्य नीति -----


(हिंदी दोहानुवाद)


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■बहूनां चैव सत्तवानां रिपुञ्जयः । वर्षान्धाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते॥


भावार्थ :


शत्रु चाहे कितना बलवान हो; यदि अनेक छोटे-छोटे व्यक्ति भी मिलकर उसका सामना करे तो उसे हरा देते हैं । छोटे-छोटे तिनकें से बना हुआ छप्पर मूसलाधार बरसती हुई वर्षा को भी रोक देता है । वास्तव में एकता में बड़ी भारी शक्ति है ।


 


★१- शक्ति संगठन में बड़ी, होती रिपु की हार।


ज्यों छत-तिनका रोक ले, वर्षा-तेज प्रहार।।


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■त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् । कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः॥


भावार्थ :


दुष्टों का साथ छोड़ दो, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन अच्छे काम करो तथा सदा ईश्वर को याद करो । यही मानव का धर्म है ।


 


★२- साथ सुजन रह तज कुजन, निशिदिन करो सुकर्म।


करो ईश-आराधना, यही मनुज का धर्म।।


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■जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि । प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारे वस्तुशक्तितः॥


भावार्थ :


जल में तेल, दुष्ट से कहि गई बात, योग्य व्यक्ति को दिया गया दान तथा बुद्धिमान को दिया ज्ञान थोड़ा सा होने पर भी अपने- आप विस्तार प्राप्त कर लेते हैं ।


 


★३- तेल-वारि खल को कथन, पात्र ज्ञान उपकार।


रहकर मात्रा अल्प भी, पा जाते विस्तार।।


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■उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी । तादृशी यदि पूर्वा स्यात्कस्य स्यान्न महोदयः ॥


भावार्थ :


गलती करने पर जो पछतावा होता है, यदि ऐसी मति गलती करने से पहले ही आ जाए, तो भला कौन उन्नति नहीं करेगा और किसे पछताना पड़ेगा ?


 


★४- गलती करके बाद में, होता पश्चाताप।


कर्म-पूर्व यह सोच लो, होगी उन्नति आप।।


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■दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये । विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा॥


भावार्थ :


मानव-मात्र में किभी भी अहंकार की भावना नहीं रहनी चाहिए बल्कि मानव को दान, तप, शूरता, विद्वता, शुशीलता और नीतिनिपुर्णता का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए । यह अहंकार ही मानव मात्र के दुःख का कारण बनता है और उसे ले डूबता है ।


 


★५- दान-शौर्य-तप-ज्ञान पर, कर न मनुज अभिमान।


कारण बनता दुःख का, अहंकार ही जान।।


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अनुवादक - 


भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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