डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

विभाजन : एक पीड़ा


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मैं विभाजन की त्रासदी से उपजा नागरिक हूँ


अपने अस्तित्व को ढूँढता हुआ मुसाफिर हूँ


विधना ने कैसा ये क्रूर मज़ाक किया


पौधे को जैसे जड विहीन कर दिया


अपना जो था वो अपना न रहा


बेगानों मै मैं अस्तित्व ढूँढता रहा


इन धर्म-कर्म की बेड़ियों ने


मेरा अपना स्व भी छीन लिया


कभी आबाद था मेरा भी जहाँ


खुशहाल, सबल था परिवार वहाँ


एक आँधी ने सब कुछ नष्ट किया


जीवन को छिन्न- भिन्न कर दिया


सपने जो मेरी आँखों मैं बसे थे


अपने जो साथ हुआ करते थे


विभाजन के हवन मैं चढ़ी उनकी आहूति


सीने मैं सुलगती है वो घटना तभी की


लोगों ने अपने स्वार्थ मैं हमें मिटा डाला


उड़ते हुए परिंदों के परों को कुचल डाला


आज अपना न कोई वजूद है


न कोई दिखता है निशां


मतलबी इंसानों की महत्वाकांक्षा


 का है ये दुष्परिणाम


आज माँगते हैं अधिकार तो हालत ये है


जिंदा हैं सरजमीं पर लेकिन निशां नहीं हैं


हम पेड़ों की वो डालियाँ हैं


जो टूटी एक बार


तो नसीब मैं सिर्फ गलियाँ हैं


थपेड़े हैं वक्त के और जीना क्या है


आँख हो जाती है नम


 सोच ये जीना क्या है


कीजिये कोई जतन कि मैं भी जिंदा हूँ


आकाश मैं उड़ता हुआ


मैं भी स्वच्छंद परिंदा हूँ


 


✍️✍️ डॉ. निर्मला शर्मा


🙏🏻🙏🏻 दौसा राजस्थान


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