डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश

चिट्ठी न कोई ख़बर आ रही है......... एक ग़ज़ल 


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चिट्ठी न कोई ख़बर आ रही है, 


धड़कन हमारी ठहर जा रही हैं।


 


वो देती है मुझको वफ़ा की दुहाई,


वो तब से हरिक सू नज़र आ रही हैं।


 


सावन की रिमझिम फुहारें भी जैसे, 


जमीं पर गुलों सी बिखर जा रही हैं। 


 


वो ज़ुल्फ़ों की ज़ुल्मी काली घटाएँ,


जो रह रहके दिल के नगर जा रही है। 


 


मुझे जिनकी मुद्दत से जुस्तजू थी


वो आकर इधर अब उधर जा रही हैं।


 


दिल ने इबादत की रात और दिन, 


अब देखो तो वो किस क़दर जा रही हैं।


 


 


मौलिक रचना -


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' 


(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०) मो० नं० 9919886297


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