क्रमशः....*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-23
अह सिव-धनु अति महिमा मंडित।
बेद-पुरान कहहिं सभ पंडित।।
राम-संभु-संबंध पुराना।
निगमागम-श्रुति-बेद बखाना।।
देव क देव प्रभू सिवसंकर।
ब्याधि भक्त कै हरैं निरंतर।।
हिय धरि संभु जे गाल बजावा।
तुरतै ते इच्छित फल पावा।।
ऐसहिं हैं भोले सिव दानी।
सबद अटै नहिं कहत कहानी।।
तासु चापु भंजन प्रभु रामा।
उतरे अवध करन यहि कामा।।
नभ नव उदित चंद्र की नाईं।
राम लगहिं बस यहि कहि पाईं।।
अब प्रभु राम सुमिरि सिवसंकर।
करहिं निरिच्छन चापु भयंकर।।
अति लाघव धनु-डोरी खींचे।
सके न देखि दृगन सभ मीचे।।
विद्युत सम प्रकास जग भयऊ।
कंपित महि,दृगपाल लजयऊ।।
जेहि छन प्रभु खंडित धनु कीन्हा।
करवट सेषनाथ जनु लीन्हा ।।
हर्षित भए गगन सभ देवा।
प्रभू-प्रसाद सिरहिं धरि लेवा।।
दोहा-ऋषि-मुनि सभ हर्षित भए,प्रमुदित अपि संसार।
प्रन पूरन जनकहिं भयउ, कटि गे कष्ट अपार।।
सीता-गति नहिं जाय बखानी।
पाइ राम जसु संभु भवानी।।
देव-संत-किन्नर-गंधर्बा।
नभ-जल-थल हर्षित भे सर्बा।।
ब्योम-अनल लखि अस गति जग की।
कहहिं राम धनु तोरि क भल की ।।
अब होइहिं सभकर कल्याना।
दूबर असुर,संत बलवाना ।।
राम-राज होइहैं जग माहीं।
छोट-बड़न जग सबहिं सराहीं।।
दूबर-नीबर एक समाना।
सभ मा बसहिं राम भगवाना।।
छुआछूत इक रोग समाजा।
अब जग मा ई रोग न छाजा।।
अब आतंक-मुक्त जग होई।
निडर होइ सभ प्रमुदित सोई।।
अब नहिं होंहि निसाचर-माया।
निसि-बासर चहुँ दिसि प्रभु-दाया।।
हवन-जग्य अब सुचिता पाई।
असुर-कला नहिं परी देखाई।।
द्विज-पंडित अरु संत-पुजारी।
पाइ कृपा प्रभु होंहिं सुखारी।।
दोहा-भयो धनुष ई भंग अब,होइहिं राम-बिबाह।
तदुपरांतयि जगत मा, रही न कोऊ आह।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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