त्याग-माहात्म्य-3
देहिं न साप-असीष सुजाना।
साप-असीष कर्म भगवाना।।
पूजहिं सुजन सास्त्र अनुकूला।
कबहुँ न जाहिं धरम- प्रतिकूला।।
बिनु फल-इच्छा प्रभुहीं पूजैं।
सुजन-करम पूजन नहिं दूजैं।।
धर्म-अर्थ बिनु मोछहि इच्छा।
सेवहिं निर्बल सुजन सदेच्छा।।
देहु नाथ मों अन-भंडारा।
मम गृह करउ रतन-अगारा।।
आइ बिराजउ मम गृह-द्वारे।
अइस न त्यागी कबहुँ पुकारे।।
सुजन-प्रार्थना अरु उपवासा।
करै सबहिं जन बिगत निरासा।।
पूजा सुफल होय निष्कामा।
हिय महँ राखि नाथ छबि-धामा।।
त्यागी-सुजन-प्रार्थना-पूजा।
परहित मात्र औरु नहिं दूजा।।
सबजन सुख हमरो सुख होई।
अस बिचार जिसु,त्यागी सोई।।
गुरु-पितु-मातु सदा ते सेवहिं।
प्रभु-प्रसाद सेवा करि लेवहिं।।
जग-कल्यानहिं निज कल्याना।
रहइ भाव अस उरहिं सुजाना।।
त्यागी-सुजन बिरत सुख-भोगा।
ओनकर इच्छा बस सुख लोंगा।।
दोहा-निसि-दिन पूजहिं प्रभुहिं कहँ, त्यागी औरु सुजान।
निज कल्यान न चाहहीं, चाहैं जग - कल्यान ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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