डॉ0हरि नाथ मिश्र

त्याग-माहात्म्य-3


देहिं न साप-असीष सुजाना।


साप-असीष कर्म भगवाना।।


  पूजहिं सुजन सास्त्र अनुकूला।


कबहुँ न जाहिं धरम- प्रतिकूला।।


बिनु फल-इच्छा प्रभुहीं पूजैं।


सुजन-करम पूजन नहिं दूजैं।।


    धर्म-अर्थ बिनु मोछहि इच्छा।


    सेवहिं निर्बल सुजन सदेच्छा।।


देहु नाथ मों अन-भंडारा।


मम गृह करउ रतन-अगारा।।


     आइ बिराजउ मम गृह-द्वारे।


     अइस न त्यागी कबहुँ पुकारे।।


सुजन-प्रार्थना अरु उपवासा।


करै सबहिं जन बिगत निरासा।।


     पूजा सुफल होय निष्कामा।


     हिय महँ राखि नाथ छबि-धामा।।


त्यागी-सुजन-प्रार्थना-पूजा।


परहित मात्र औरु नहिं दूजा।।


    सबजन सुख हमरो सुख होई।


    अस बिचार जिसु,त्यागी सोई।।


गुरु-पितु-मातु सदा ते सेवहिं।


प्रभु-प्रसाद सेवा करि लेवहिं।।


    जग-कल्यानहिं निज कल्याना।


    रहइ भाव अस उरहिं सुजाना।।


त्यागी-सुजन बिरत सुख-भोगा।


ओनकर इच्छा बस सुख लोंगा।।


दोहा-निसि-दिन पूजहिं प्रभुहिं कहँ, त्यागी औरु सुजान।


        निज कल्यान न चाहहीं, चाहैं जग - कल्यान ।।


                  डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...