डॉ0हरि नाथ मिश्र

क्रमशः...*पहला चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26


गया सनेस अजुधिया धामा।


तोरे संकर-धनु श्रीरामा ।।


    सुनि सनेस दसरथ भे बिह्वल


    नैनन नीर बहा बहु छल-छल।।


साथहिं पा सनेस सुभ-मंगल।


राम-बिबाह सीय सँग यहि पल।।


   सजी बरात अवध से जाई।


   बड़ सोभा अब मिथिला पाई।।


जनक-सुता, जग-जननी सीता।


होंइहैं जगत-पिता परिनीता ।।


    अहम रूप जब सिव-धनु टूटा।


    ब्रह्म-सक्ति भे मेल अटूटा ।।


असुर-प्रमाद पलायित होई।


सुर-तप-बल नहिं गरिमा खोई।।


   श्रद्धा-भक्ति जगत अस आवहिं।


   फैलइ दुर्बा जस जल पावहिं।।


जस जल बीच मीन सुख लहहीं।


वैसहिं जगत-संत सुख पवहीं।।


   होय नहीं अब जग्य बिधंसा।


   जग-कल्यान अहहि प्रभु-मनसा।।


दोहा-जग मा अब सरिता बही, लेइ भक्ति-जल-धार।


        जोगी-तपसी-भक्तजन,सबकर बेड़ा पार ।।


चल बरात लइ दसरथ राजा।


मिथिला-नगरी साजि समाजा।।


    हय-दल,गज-दल सँग-सँग चलहीं।


    पैदल चलत नृत्य जनु करहीं ।।


सजे अस्व-रथ पे दसरथहीं।


तरसहिं देखि जिनहिं सुर सबहीं।।


    दूजे रथ पर भरत-सत्रुघन।


    लागहिं चले करनि रिपु-मर्दन।।


बाजा-गाजा,साज-समाजा।


नाचैं-गावैं जस ऋतु राजा।।


    अगनित लढ़यन भरि-भरि मेवा।


    ठहरि-ठहरि सभ करैं कलेवा।।


उछरत-कूदत मग महँ सबहीं।


ढोल-नगाड़ा पीटत चलहीं।।


     इत्र-गुलाल पोति बहुरंगा।


     उड़त चलैं जस उड़े पतंगा।।


होंहिं बराती भूपति नाईं।


चंचल मन-चित जस लरिकाईं।।


     जे केहु मिलै डगर पुरवासी।


     छेड़हिं तिनहिं, न दिए निकासी।।


तिन्ह सँग करहिं बिनोदै नाना।


हरकत करैं जानि मनमाना।।


दोहा-नाचत-गावत जब सभें,पहुँचे मिथिला-देस।


        तम्मू सहित कनात महँ,ठहरे नूतन भेस।।


                   डॉ0हरि नाथ मिश्र


                    9919446372


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