क्रमशः...*पहला चरण*(श्रीरामचरितबखान)-26
गया सनेस अजुधिया धामा।
तोरे संकर-धनु श्रीरामा ।।
सुनि सनेस दसरथ भे बिह्वल
नैनन नीर बहा बहु छल-छल।।
साथहिं पा सनेस सुभ-मंगल।
राम-बिबाह सीय सँग यहि पल।।
सजी बरात अवध से जाई।
बड़ सोभा अब मिथिला पाई।।
जनक-सुता, जग-जननी सीता।
होंइहैं जगत-पिता परिनीता ।।
अहम रूप जब सिव-धनु टूटा।
ब्रह्म-सक्ति भे मेल अटूटा ।।
असुर-प्रमाद पलायित होई।
सुर-तप-बल नहिं गरिमा खोई।।
श्रद्धा-भक्ति जगत अस आवहिं।
फैलइ दुर्बा जस जल पावहिं।।
जस जल बीच मीन सुख लहहीं।
वैसहिं जगत-संत सुख पवहीं।।
होय नहीं अब जग्य बिधंसा।
जग-कल्यान अहहि प्रभु-मनसा।।
दोहा-जग मा अब सरिता बही, लेइ भक्ति-जल-धार।
जोगी-तपसी-भक्तजन,सबकर बेड़ा पार ।।
चल बरात लइ दसरथ राजा।
मिथिला-नगरी साजि समाजा।।
हय-दल,गज-दल सँग-सँग चलहीं।
पैदल चलत नृत्य जनु करहीं ।।
सजे अस्व-रथ पे दसरथहीं।
तरसहिं देखि जिनहिं सुर सबहीं।।
दूजे रथ पर भरत-सत्रुघन।
लागहिं चले करनि रिपु-मर्दन।।
बाजा-गाजा,साज-समाजा।
नाचैं-गावैं जस ऋतु राजा।।
अगनित लढ़यन भरि-भरि मेवा।
ठहरि-ठहरि सभ करैं कलेवा।।
उछरत-कूदत मग महँ सबहीं।
ढोल-नगाड़ा पीटत चलहीं।।
इत्र-गुलाल पोति बहुरंगा।
उड़त चलैं जस उड़े पतंगा।।
होंहिं बराती भूपति नाईं।
चंचल मन-चित जस लरिकाईं।।
जे केहु मिलै डगर पुरवासी।
छेड़हिं तिनहिं, न दिए निकासी।।
तिन्ह सँग करहिं बिनोदै नाना।
हरकत करैं जानि मनमाना।।
दोहा-नाचत-गावत जब सभें,पहुँचे मिथिला-देस।
तम्मू सहित कनात महँ,ठहरे नूतन भेस।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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