डॉ0हरि नाथ मिश्र

त्याग-महात्म्य-2


तजि आलस कुरु बिनु फल-इच्छा।


सेवा-भाव त्याग कै सिच्छा ।।


   आलस त्यागि करहि जे करमा।


   निज गृह-काजु-दान-जगि-धरमा।।


लहहिं परम सुख अंतहिं काले।


अस जन प्रभु के भगत निराले।।


    परम दयालु-सुहृद,प्रभु-प्रेमी।


    करहिं श्रवन प्रभु-कथा सनेमी।।


अस जन त्यागी अहँ संसारा।


हरहिं अनाथ-कलेस अपारा।।


    बंधु-बांधवहिं,स्त्री-नौकर।


    सुत अरु सुता सबहिं कै होकर।।


एकहि भाव-सोच उर धारी।


सेवैं जस सेवहिं उपकारी।।


    पाठन-पठन-श्रवन प्रभु-लीला।


    करहिं त्यागि आलस गुनसीला।।


सकलै भोग लोक-परलोका।


मानि असत जग रहहिं असोका।।


    कबहुँ न माँगहिं अस बरदाना।


     करु प्रभु मोर अबहिं कल्याना।।


बरु चलि जाय प्रान अबिनासा।


पर नहिं माँगहिं भोग-बिलासा।।


    त्यागी जन जग जस प्रह्लादा।


    अगिनि प्रबेस कीन्ह अहलादा।।


दोहा-त्यागी माँगहिं कबहुँ नहिं, लोक औरु परलोक।


         भोग-बिलास न चाहि के,जग मा रहहिं असोक।।


                       डॉ0हरि नाथ मिश्र


                         9919446372


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