डॉ0हरि नाथ मिश्र

*सिंधु-वंदना*


हे महाशक्ति!हे महाप्राण!मेरा वंदन स्वीकार करो।


कर दो संभव मैं तिलक करूँ,मेरा चंदन स्वीकार करो।।


           हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....


युगों-युगों से इच्छा थी,कब तेरा दीदार करूँ?


नहीं पता चाहत थी कब से तेरा ख़िदमतगार बनूँ?


करूँ अर्चना तत्क्षण तेरी,मेरा क्रंदन स्वीकार करो।।


           हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....


ललित ललाम निनाद तुम्हारा महाघोष परिचायक है।


जलनिधि का नीलाभ आवरण चित्त-हर्षक-सुखदायकहै।


करो कृपा मैं आसन दे दूँ, मेरा आसन स्वीकार करो।।


            हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....


पूनम का वो चाँद सलोना जब अंबर पे होता है,


तू ले अँगड़ाई ऊपर उठ कर बाहों में भर लेता है।


बँधू प्रेम-धागे से तुझ सँग, मेरा बंधन स्वीकार करो।।


           हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....


तू पयोधि-उदधि-रत्नाकर,जल-थल-नभ-चर पालक है।


प्रकृति-कोष. के निर्माता तू,जीवन-ज्योति-विधायक है।


चरण पखारूँ मैं भी तेरा,मेरा सिंचन स्वीकार करो।।


        हे महाशक्ति,हे महाप्राण!....।।


              ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


               9919446372


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