क्रमशः...*प्रथम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-25
कुपित भयो ऋषि परसुराम जी।
जब धनु तोरे सिरी राम जी ।।
तुरत पधारे जहँ धनु टूटा।
लागहि परसु-क्रोध-घट फूटा।।
पूछहिं पुनि-पुनि धनु को तोरा।
वहि का दिन महि पे अब थोरा।।
तुरतहि ऊ नर काल समाई।
चलि न सकै अब कछु चतुराई।।
अब धरि संभु रूप बिकरला।
डारे संग ब्याल उर माला।।
अइहैं आसुतोष जग माँहीं।
यहि मा कछु संसय अब नाहीं।।
सिवसंकर करिहैं संहारा।
यही तथ्य जानै जग सारा।।
करी प्रहार परसु अब मोरा।
जाइ पहुँचि जग नासहिं छोरा।।
जे केहु यहि मा भंजनहारा।
तुरत उठै निज नाम पुकारा।।
दोहा-कुपित होइ लछिमन उठे,कहन लगे रिसियाय।
नहीं कोऊ कोमल इहाँ, जे छूए मुरुझाय ।।
लखन-क्रोध प्रभु राम लखि,भय बिनम्र धरि धीर।
कर जोरे मुनि तें कह्यौ, मैं दोषी गंभीर ।।
मैं मुनि तव दोषी-अपराधी।
दंड देउ मोंहि समुझि गताधी।।
मम सँग तव बंधन जग जानै।
बेद-पुरान-सास्त्र जेहि मानै।।
जित देखहुँ उत प्रभुहिं प्रभावा।
अंड-पिंड-स्वेतज महँ पावा।।
स्थावर-सुगंध प्रभु-बासा।
रूप-रंग-मकरंद-निवासा।।
बिनु तव कृपा जीव जग नाहीं।
होहि मरन प्रभु आयसु पाहीं।।
बरसहिं अवनि जलद घनघोरा।
चमकहिं चंद्र-सूर्य चहुँ ओरा।।
बिनु तव कृपा राम भगवाना।
होंहि न जग कदापि कल्याना।।
अस सुनि कथनहि परसुराम कय।
समुझे भेदहि परम-धाम कय ।।
रूद्र रूप धरि परसु पधारे।
राम रूप धरि जनकहिं तारे।।
रामहिं भेद परसु जब जाने।
भय संतुष्ट न जाय बखाने।।
दोहा-परसु गयो रामहिं समझु,राम परसु कै नाम।
दोनउ रूपहिं एक छबि,परसु कहौ वा राम।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372 क्रमशः.....
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