*अतुकांत दोहे-अभिनव प्रयोग*
तुकबन्दी के मोह का करो आज परित्याग।
रचनाएँ करते रहो हो स्वतंत्र आजाद।।
तुकबन्दी की फांस में फंस मत हो वर्वाद।
कर विचार की आरती रख विचार की बात।।
रचनाकार स्वतन्त्रता का पाये आनन्द।
माथापच्ची छोड़कर रचे अनवरत काव्य।।
सुन्दर भावों में बहो लिखते रहो सुलेख।
हो सुलेख से विश्व का युग-युग तक कल्याण।।
स्वरचित सुन्दर काव्य का करते रहना पाठ।
गा-गाकरके नाचना झूम-झूमकर कूद।
अतुकांत दोहे रचो बन ईश्वर सा मस्त।
तुकबन्दीगृह से निकल भरते रहो उड़ान।।
पस्त करो पाबंदियां चूमो गगन अनन्त।
तुकबन्दी की जाल को काट रचो अतुकांत।।
उत्तम शुद्ध विचार के यहाँ समर्थक लोग।
भावों का साहित्य में अब होता सम्मान।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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