*दोहा ग़ज़ल*
माँ की ममता अप्रतिम नैसर्गिक अनुराग।
दिल के टुकड़े के लिये सहज समर्पण त्याग।।
शिशु की सेवा में सतत रहती है लवलीन।
शिशु को निरखत हर समय समझत अति बड़ भाग।।
शिशु ही असली संपदा भरता माँ की गोद।
शिशु को सीने से लिये गाती अमृत फाग।।
शिशु ही माँ की आत्मा शिशु पालन ही धर्म।
शिशु से खिलती चहकती है माता की बाग।।
शिशु अति प्रिय उपहार है ईश्वर का वरदान।
शिशु ही अमृत पर्व है शिशु ही दिव्य सुहाग।।
शिशु पा कर माँ अति सुखी उर में नित मधु भाव।
शिशु से माँ शोभावती शिशु प्रति अनुपम राग।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मि5हरिहरपुरी
9838453801
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