डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*दोहा ग़ज़ल*


 


चापलूस के जाल में कभी न फँसना यार।


बाहर से मीठा बनत भीतर है तलवार।।


 


बहुत अधिक चालाक है चापलूस की जाति।


मूर्ख बनाने का मिला है इनको अधिकार।।


 


मन में विष थाली सजी बाहर अमृत भोग।


टपकाते हैं प्रेम से सब पर रस की धार।।


 


सदा खुशामद में मगन हिल-मिल करते बात ।


काम बनाने के लिये करते सरहद पार।।


 


अति विचित्र जीवन चरित सभी काम आसान।


काम बनाने के लिये जोड़त सारे तार।।


 


कलियुग में अतिशय सफल चापलूस की कौम।


अधिकारी की मालिकिन के ये पहरेदार।।


 


हाँ में हाँ करना सदा इनका असली कर्म।


इसी नाव पर बैठकर करते जीवन पार।।


 


पीछे-पीछे दौड़ना ही इनका है धर्म।


झूठ प्रशंसा को सदा देते हैं रफ्तार।।


 


घर को अपने छोड़कर अधिकारी के संग।


घुमा करता रात-दिन अधिकारी का सार।।


 


अधिकारी को चाहिये चापलूस की फौज।


इनके बल पर दौड़ती अधिकारी की कार।।


 


चापलूस की जिन्दगी का मत पूछो हाल।


इन पर पड़ती है नहीं अधिकारी की मार।


 


चापलूस बनना कठिन स्वाभिमान से दूर।


अधिकारी का करत है निशिदिन शाखोच्चार।।


 


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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