डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

*सत्यार्थ समर्पण*


 


 सत्य का ही आग्रही बन कर चलो,


सत्य को स्वीकारना ही धर्म है।


 


सत्य पथ से जो नहीं मुख मोड़ता,


सत्य उसका चरण छूता मर्म है।


 


सत्य का संधान जिसका लक्ष्य है,


सत्य से विचलित कभी होता नहीं।


 


सत्य को जो जानता वह सुकवि है,


सत्य को रचता विधाता है वही।।


 


सत्य में जिसका परम अनुराग है,


सत्य का पाता वही बड़ भाग है।


 


सत्य ब्रह्मा विष्णु का शिव रूप है,


सत्य असली धर्मधारी भूप है।।


 


सत्य के कंधे से जो कंधा मिलाता,


धर्म का वह स्तूप है प्रिय धूप है।


 


सत्य का सम्मान करता है मनुज,


सत्य का अपमान करता है दनुज।


 


सत्य की चाहत परम सौभाग्य है,


सत्य से होना विमुख दुर्भाग्य है।


 


सत्य केवल देखता है सत्य को,


चूमता रहता सदा है सत्य को।


 


झूठ की दुनिया उसे अच्छी नहीं,


रात-दिन वह याद करता सत्य को।


 


जागरण में शयन में वह सत्य को,


बात में भी बोल में भी सत्य को।।


 


सत्य बनकर घूमता वह विश्व में,


सत्य का ही जाप करता विश्व में।


 


सत्य की राहें बनाता रात-दिन,


सत्य ध्वज लेकर मचलता विश्व में।


 


सत्य का लेकर विजयरथ दौड़ता,


पाप की अन्तिम जड़ों को रौंदता।।


 


सत्य का आसन सदा सर्वोच्च है,


सत्य ही पुरुषार्थ सच्चा मोक्ष है।


 


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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