काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार ऋषि कुमार शर्मा बरेली

ऋषि कुमार शर्मा


पुत्र स्वर्गीय कर्नल पतंजलि शर्मा


जन्मतिथि 29 जून 1956


शिक्षा बी ० काम ०


सेवानिवृत्त प्रबंधक रीडर जनपद न्यायालय बरेली


मूलनिवासी ग्राम गुराई बदायूं


स्थाई निवास 3, ऑफिसर्स कॉलोनी, नकटिया, पोस्ट पी० ए ० सी ० बरेली उत्तर प्रदेश


काव्य यात्रा लगभग 26-27 वर्ष


अभी तक 3 साझा काव्य संग्रह प्रकाशित।


अनेक मंचों से काव्य पाठ, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से काव्य पाठ।


 


कविता-1


मेरी दीवानगी यूं बढ़ाने लगे, बातों बातों में मुझसे लजाने लगे।


जो लिखे गीत मैंने उन्हें सोचकर, वह वही गीत छुप छुप के गाने लगे।


प्यार में उनके मैं डूब इतना गया, रात दिन वह खयालों में आने लगे।


हुस्न ने उनके जादू सा ऐसा किया, हर तरफ वो ही वो झिलमिलाने लगे।


इस अदा से मिलाई थी मुझसे नजर, आंख के रस्ते दिल में समाने लगे।


जब भी तारीफ में मैंने कुछ कह दिया, सिर झुका कर के वह मुस्कुराने लगे।


उनके दीदार को दिल मचलता है यूं, जैसे आने में उनको जमाने लगे।


मेरी दीवानगी यूं बढ़ाने लगे, बातों बातों में मुझसे लजाने लगे।


ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली उत्तर प्रदेश।


9837753290.


 


कविता-2


 


वीर सैनिक


************


है नमन शत शत नमन, वीरों तुम्हें शत शत नमन।


सींचते अपने लहू से देश का प्यारा चमन।


भाई हो तुम भी किसी की मांग का सिंदूर हो,


बूढ़े मां बापों की आंखों के तुम ही तो नूर हो।


खाई है कसमें तुम्हीं ने देश पर बलिदान की,


इसलिए सीमा पर चौकस तुम घरों से दूर हो।


तेज है नानक का तुझ में और मोहम्मद का है बल,


राम की शक्ति है तुझ में तू है ईसा सा निश्चल।


बर्फ की चोटी हो तपती रेत रेगिस्तान की,


तुम लगा देते हो बाजी बढ़कर अपनी जान की।


जिस्म है फौलाद तेरा, भोली सी मुस्कान है,


हर दिशा में अब तुम्हारी वीरता का गान है।


है कोई गुजरात से बंगाल से बिहार से,


है जुदा सबके बदन पर एक सबकी जान है।


ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली।


 


कविता-3


 


कभी थे जिसके करीब हम भी


वह दूर हमसे यूं जा रहा है,


कभी मिलाई थी हमसे नजरें,


नजर वह हम से चुरा रहा है।


कभी थे जिसके करीब हम भी।


    सदा हमारी मोहब्बतों में,


वफा के उसने थे गीत गाए,


हुआ क्या ऐसा समझ ना पाया,


है बैठा कब से नजर झुकाए।


सदा हमारी मोहब्बतों में।


     ऐ चांद तारों जरा तो जाना,


अरी हवाओं संदेशा लाना,


वह रुठा हुआ सा क्यों है,


उसे मनाना उसे मनाना।


ऐ चांद तारों जरा तो जाना।


      मेरी यह रातें न कट रही है,


निगाहे मेरी भटक रही हैं,


मैं हूं परेशां बिना तुम्हारे,


उसे बताना उसे बताना।


 


ऋषि कुमार शर्मा


कविता-4


 


मेरा दामन तो खुशियों से भर जाएगा


रूह में मेरी तू जो उतर जाएगा


साजे दिल छेड़ दे आज की रात तू


चांद बदली से अपनी निकल आएगा।


अपनी आंखों से मदिरा पिला दे अगर


जैसे जन्नत यहीं पर मैं पा जाऊंगा


हसरतें मेरी सारी निकल जायेंगी


जिंदगी भर को मदहोश हो जाऊंगा।


तेरे दीदार की आस दिल में लिये


तेरी राहों में मैंने जलाए दिये


आ भी जाओ कि बेताब कितना हूं मैं


बांह खोले खड़ा हूं तुम्हारे लिये।


आसमानों से ऊंचा मेरा प्यार है


प्यार से तेरे मेरा ही संसार है


देख कर मुझको सब लोग कहने लगे


तेरे सजदे में तेरा ही दिलदार है।


 


 


कविता-5


 


प्यार में तेरे हद से गुजर जाऊंगा


जिंदगी भर तुझे भूल ना पाऊंगा


मेरे जीवन में आई है तू इस तरह


गीत चाहत के तेरी सदा गाऊंगा।


फूल भंवरे सा तेरा मेरा साथ हो


आंखों आंखों में तेरी मेरी बात हो


अपने सीने से ऐसे लगा ले मुझे


प्यार की उम्र भर यूं ही बरसात हो।


तेरी जुल्फों की बदली में छुप जाऊंगा


प्यार की ऐसी मूरत कहां पाऊंगा


डोर जीवन की मेरी तेरे हाथ है


तू जिधर मोड़ देगी मैं मुड़ जाऊंगा।


रूप ऐसा कहां से यह लाई है तू


चांदनी में नहा कर के आई है तू


आज रब से तुझे मांग ना है मुझे


दिल में ऐसी मेरे यूं समाई है तू।


ऋषि कुमार शर्मा कवि बरेली


9837753290.


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...