संगीता राजपूत " श्यामा "
शिक्षा - एम ए
संप्रति - लेखिका, कवयित्री
जन्मस्थान - कानपुर ( उत्तर प्रदेश )
प्रकाशित पुस्तके - श्यामला, माह और विहंगम लघुकथा संग्रह
अन्य साँझा संग्रह मे प्रकाशित कवितायें
कविताये 1
शीर्षक- तुझको मै मनाऊगा
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आके बैठो पास मेरे
तुझको मै मनाऊगा, गीत मधुर सुनाऊंगा----
प्रियतम हूँ मै तेरा सजनी
दूर खङी क्यो चुप्पी साधे
भेद दिलो के खोलो गोरी
मन मे बातो को क्यू बांधे
आखों से आंसू चुराऊगा
गीत मधुर सुनाऊंगा
तुझको मै -----
बैरी बनता जग का घेरा
बिन तेरे कौन है सहारा
चमके टिमटिम नभ का तारा
दमके ऐसा संग हमारा
नेह की सरगम बजाऊगा
गीत मधुर सुनाऊंगा
तुझको मै-------
हीरे मोती पास नहीं है
गांव में है दूर बसेरा
अर्पण करता जीवन अपना
खींच के लाऊं मैं सवेरा
मांग सिन्दूरी सजाऊगा
गीत मधुर सुनाऊंगा
तुझको मै--------
✍ संगीता राजपूत 'श्यामा '
कानपुर ( उत्तर प्रदेश )
कविता 2
शीर्षक ( कोहराम )
थम सी गयी है जिन्दगी
पूस की ठंडी रातो मे
छा रहा है अंधेरा घना
और सुलग रहे अंगार भी
छल प्रपंच का कोहरा
मचा रहा कोहराम भी
धधक रहे षड्यंत्र के शोले
उठ रही नफरतो की दीवार भी
किस किस को समझाऊँ मैं
हर कोई बस फूंकने को तैयार है
वामपंथ के कीचङ मे सन कर
बर्बाद हो रहे नौजवान भी
उन्मुक्त हो कर रहे उपद्रव
रौदते मर्यादा और सम्मान भी
चाहते हो मिटाना, तो मिटाओ
अन्याय अत्याचार को
चाहते गर तोङना, तो तोङो
बेङिया जातिवाद की
राष्ट्र की सेवा में तप कर
चमको तुम कुंदन के जैसे
बढ चलो कर्तव्य पथ पर
तुम हो तैयार, तो हूँ तैयार मै भी
संगीता राजपूत 'श्यामा '
कानपुर ( उत्तर प्रदेश )
कविता 3
शीर्षक - प्रेम दीप
दीपक जलाके प्रेम का
स्वयं को बाती बना दिया
हदय के उजङे नगर मे
प्रेम कमल दल खिला दिया -----
जन्म जन्म की मै प्यासी
पिया विरह में तप रही
आखों में आस मिलन की
प्रीति की माला जप रही
प्यार का अक्षर आधा पहला
मैने पूरा सच्चा बना दिया --------
प्रेम की धारा बहती जग में
प्रेम ही होता जीवन सार
बिना प्रीत के सूना जीवन
सुन ले मेरे प्राण आधार
फूलों से महके नगर का
तुमको मैने स्वामी बना दिया -----
आत्मा से आत्मा का बंधन
पुण्य प्रेम का बनता मार्ग
काम रहित हो प्रीति जिसकी
पावन वो ही होता प्यार
तेरे बिन मै रह ना पाऊँ
स्वयं को हंसिनी बना दिया ------
संगीता राजपूत ' श्यामा '
कानपुर ( उत्तर प्रदेश )
कविता 4
शीर्षक ( कचौरी )
तपती रेत, सुलगती छूप
पीङा की तपिश मे , झुलसता रूप
पैरो की फटी बिवाइया, सख्त हुयी
पेट मे दौङती भूख और हांफता शरीर
ठेले पर लगी कचौरी, जी ललचाने
लगी
फटी जेबे, खाली हाथ ,आखो की लाचारी
टूटता धैर्य, बढती भूख और आक्रामक हो चली
झपटा हाथ , हाथो मे दबा दो कचौरिया
भूखे लङखङाते कदम और पीछे
भागती भीङ
भीङ के पत्थर से लहूलुहान शरीर
सुनसान टूटी इमारत, कचौरी संग स्वयं को छुपाता शरीर
गहरे घाव , घाव की पीङा से कांपते हाथ
बहता खून, टूटती सांसे
निर्जीव पङा शरीर
कुत्तो का झुंड, कचौरी पर झपटना
निर्जीव आखों का अभी भी कचौरी को देखना
संगीता राजपूत "श्यामा "
कानपुर ( उत्तर प्रदेश )
कविता 5
शीर्षक - मातृत्व
विचार मग्न प्रकृति बैठी
हर घर मातृत्व बरसाऊ कैसे
निज संतान को ढाढ़स दे
वो प्रेम सुधा भर लाऊं कैसे -----
स्वयं को बाटा माँ के रूप मे
गढी प्रकृति ने ममता की मूरत
अमृत मय है माँ की बोली
छवि सलोनी मधुमय सूरत
ईश भी जिनको शीश नवाते
ह्दय मै उसका दुखाऊँ कैसे
निज संतान -----
सागर तल से गहरी होती
मां भावो की डोली है
जिनकी आशीषों से मिलती
खुशियों की भर झोली है
मां की थपकी बङी सुहावन
आँचल प्यार का भुलाऊ कैसे
निज संतान को-----
भरे रहे कुटुम्बी सारे
पीहर लागे माँ बिन सूना
देखे दौङ लगाये छाती
देती वह अपने से दूना
जिनकी माँ ना होती जग में
बहते नीर सुखाए कौन
निज संतान -----
✍
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