काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार ममता बारोट गुजरात, गांधीनगर


सेक्टर 6/ए,472/1


शिक्षा स्नातक


सम्मान -- 


साहित्य शिल्पी सम्मान 


 


अक्षय काव्य सम्मान 


 


श्याम सौभाग्य सम्मान 


 


जनभाषाहिन्दी .काॅम द्वारा 


प्रशस्ति पत्र


 


रावटभाटा पावर प्लांट पत्रिका में कविता प्रकाशित


 


काव्य रंगोली 


 


रंगोली कविताओ की, 


सुंदर-सुंदर रंगो की ,


रंग रूपी शब्दों से सजी, 


काव्य से रंगोली बनाने की। 


 


कवि की सृजनता की,


सृजनता से सुंदरता की, 


सुंदर इसे बनाने की, 


काव्य रंगोली सजाने की। 


 


काव्यो के भावो की, 


उसे महसूस करने की, 


मन की बातें लिखने की, 


काव्य रंगोली हे मन की ।


 


भाव भरी सच्चाई की, 


सेवा भाव भलाई की, 


सच से अवगत करने की, 


काव्य रंगोली भावनाओं की।


 


कविता -2


 


कविता 


 


भाव प्रकट करने का माध्यम


कविता गुणवत्ता का साध्यम


ना बोल सके उसे लिख सकता 


भावनाओं को प्रकट हे करता 


कला लिखने की हे निखारता 


भावो को भी सुंदर करता


सुंदरता जीवन में भरता 


मन से भाव निकल सा जाता


साफ पवित्र मन ये बन जाता 


कवित्व जीवन सफल हो जाता


कविता ही जीवन बन जाता।


 


 


कविता 3


क्या हे पिता


 


पापा क्या हे, क्या तुमने जाना,


बस पापा पापा कहते जाना ,


पर उन्हें कभी तुमने हे जाना।


 


जरूरते घर की पूरी वह करते, 


पापा ये लाओ,पापा वो लाओ,


ये सब परिवार के लिए करते।


 


सुबह से शाम काम वो करते, 


भले ही कितना थक वो जाते, 


सब परिवार के लिए हे करते। 


 


भले पूरे दिन बाहर वो रहते, 


थक कर काम खुशी से करते, 


कभी हे सोचा क्यो ऐसा करते।


 


आगे बढ़ने की शिक्षा देते, 


अच्छाई का पाठ पढ़ाते, 


प्यार हे पर नहीं जताते। 


 


ममता बारोट


सेक्टर 6/ए,472/1


गुजरात, गांधीनगर


 


कविता 4


मे ममता, 


माँ का प्यार भी ममता, 


सबके लिए रखती हे समता। 


 


उनका हर रूप अनोखा, 


गुस्से मे भी प्यार हे रमता, 


मे और मेरीे माँ की ममता।


 


सच,झूठ की पहचान मे ममता,


डाटे, मारे उसमे भी ममता ,


उस जन्मदायिनी माँ की ममता। 


 


माँ के दुलार मे ममता, 


जीवन के उद्धार मे ममता, 


मूझको नाम दिया मे ममता।


 


अद्धभुत हे उनकी यह क्षमता, 


दुख को सुख मे बदलती ममता


मे और मेरे मा की ममता ।


 


कविता-5


जीवन का हर रुप बदलता, 


पत्तो का भी रंग बदलता,


मन भी तो पल पल बदलता। 


 


मन लगता, नहीं भी लगता,


दिल करता, नहीं भी करता, 


जीवन का हर क्षण बदलता। 


 


आशाओ से जीवन चलता,


इच्छाओ की धारा बदलता, 


धाराओ की दिशा बदलता। 


 


कभी धीमा, कभी तेज चलता,


कभी ये ,तो कभी वो हे करता, कुछ पाने को दिल हे करता। 


 


ये भी करू, वो भी करू,


क्या करू, क्या ना करू,


इच्छाओ को हर पल बदलता। 


 


दुख कभी तो सुख हे मिलता, दूर कभी तो पास हे लगता, 


मंजिल भी राह हे बदलता। 


 


कभी कवि,फंकार भी बनता, 


ना चाहा, हर काम हे करता, 


कुछ पाने की चाह हे करता।


 


 


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