काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार आभा गुप्ता बिलासपुर छत्तीसगढ़

श्रीमती आभा गुप्ता 


*जन्म* : 25 जून 1964   


*शिक्षा*: बी.एस.सी. , एम.ए. ( हिन्दी साहित्य ) बी.एड. ( हिन्दी साहित्य ) 


*उल्लेखनीय*: 


श्रीमद् भागवत कथा का सरल शब्दों में लेखन एवं प्रवचन । 


*सहभागिता*: राजकीय , राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता 


*सम्मान*:


1 ) विकास संस्कृति महोत्सव द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान 8 नवम्बर 2009  


 2 ) अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद बिलासपुर की तृतीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी 5 दिसम्बर 2010 में विकलांग विमर्श राष्ट्रीय सम्मान । 


3 ) प्रताप महाविद्यालय अमलनेर ( महाराष्ट्र ) मैं आयोजित त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में विकलांग विमर्श पर अंतराष्ट्रीय सम्मान 19 जुलाई 2014 


*सम्पर्क*:


एच -2 / 121 नर्मदा नगर , बिलासपुर ( छ.ग. ) 


मो . नं . - 7828070332 , 9131859881


पिन -495001


Email id: abhagupta1964@gmail.com


 


कविता -1


*बेटी (भ्रूण हत्या )*


1 . माॅ की आॅखो की नूर है बेटी ,


    जहाॅ की सबसे खूबसूरत हूर है बेटी,


रिश्तो को निभाने में मशहूर है बेटी,


*फिर क्यों*-माॅ की कोख से दूर है बेटी।


2 *_माता-पिता के लिए संदेश_*


 बनते है हम अति- आधुनिक और महान।


नही कोई फर्क बेटा-बेटी मे यह देते ज्ञान ,


बारी जब अपनी आती है, तो बन जाते अन्जान ।


इस कारण जन्म से पहले, बेटियाॅ पहुंच जाती श्मशान ।


3. *_चिकित्सक के लिए_* 


अजन्में बालिका शिशु के, पाप से आत्मा को न मारो।


नारी कोख ने तुम्हे रचा है, इस बात को विचारो ।


ब॓द करो यह अत्याचार, मानवता को स्वीकारो ।


प्रायश्चित करो और अब, ईश्वर को पुकारो ।


4 *_समाज के लिए -_* 


बेटी अब नही होती है अबला नारी ।


आज नही है वह लाचार और बेचारी ।


कदम से कदम मिला कर पुरुषो के कर रही भागीदारी ।


तभी तो बेटी के कंधो के सहारे हम करते है बुढ़ापे की तैयारी ।


5. *_भाग्य_* --


  धन्य है वह मां-बाप, जिसने बेटी धन है पाया ।


बेटे के गुरूर ने आज, बुढ़ापे मे है ठुकराया ।


चल दिया बहु लेकर नही, कोई अपना पराया ।


मै हुँ, तुम्हारे साथ यह बेटी ने दिलासा दिलाया ।


6. _*संदेश*_ 


जीवन पर्यन्त चलती रहेगी यह कहानी।


कुल तारक आज भी बेटा ही है निशानी।


परवाह नही कल की कट जायें जिंदगानी ।


मरने के बाद तो काया भी हो जाती है बेगानी ।


 


कविता -2


*झूठ*


 


मानव की उदंड अभिलाषा , 


यही है झूठ की परिभाषा । 


झूठ है इक बहता पानी , 


रूकता नहीं पल करता मनमानी। 


असत्य जीवन का है लाइलाज रोग, 


जिसे मनुष्य चुपचाप रहा है भोग। 


यह झूठ है , कहती रह जाती आत्मा, 


झूठी शान कर देता उसका खात्मा। 


अरे ! तू झूठ बोलकर क्या पायेगा, 


अपनी ही नजरों में गिरता जायेगा। 


इंसान किस तरह झूठ बोलता है , 


हर हाल में अपनी ही पोल खोलता है। 


कभी बड़ाई के लिए झूठ


कभी लड़ाई के लिए झूठ। 


कभी बात की सफाई के लिए झूठ 


कभी अधिक कमाई के लिए झूठ।


कभी सम्मान पाने के लिए झूठ


कभी अपमान से बचने के लिए झूठ। 


कभी रोटी के लिए झूठ 


कभी बेटी के लिए झूठ।


गिनती नहीं इनकी दो - चार, 


इनके तो है अनेक प्रकार ।


यह करता है बिन लाठी प्रहार, 


इंसा ,मन से हो जाता जार जार । 


इसका नहीं है कोई अंत ,


चलता रहेगा यह जीवन पर्यन्त । 


अभी भी वक्त है मान जा मेरे भाई , 


झूठ से मत कर जीवन की सफाई । 


सच का प्रकाश जीवन में भरने दो , 


झूठ को आंखो से आंसू बनकर झरने दो । 


होगी जब शुद्ध तेरी आत्मा ,


मिल जायेंगे तुझे भी परमात्मा ।


 


कविता -3


*बेवफा समय*


समय तू कितनी बेवफा है,


स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । 


एक ही कोख से जन्में भाई - बहन ही,


आज सबसे अधिक आपस में खफा है।


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । निःस्वार्थ प्यार और अपनेपन से घर - आंगन रहता था गुलजार,


अब मैं और मेरी दुनियाँ में ही सिमट कर रह गया है, सारा संसार । 


दर्द मन की गहराइयों में, दब कर हो रहे हैं जार - जार ,


क्योंकि ! सुनने के लिए वक्त नहीं , 


बांटे किससे कोई भी नहीं है सच्चा किरदार ।


समय तू - कितनी बेवफा है ,


स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नही अब वफ़ा है। 


बूढ़े माँ - बाप आधुनिक बच्चों की भावनाओं के हो गये है गुलाम,


इस कुर्बानी को भूल पल भर भी कोई नहीं मानता उनका एहसान,


समय के साथ एडजस्ट करना पड़ेगा , तभी तक होगा तुम्हारा मान,


वरना , कर लो अपना इंतजाम और बांध लो अपना सामान । 


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । गलतफहमी और ईगो ही इंसानियत की है, दुश्मन बड़े घरों में रहने वाले आधुनिक लोगों के छोटे हो गये हैं मन । 


अपनों से ही मिलता है दर्द , गैरों ने तो फिर भी सहलाया है दामन,


कसूर है , वक्त का कि , माँ - बाप से भी हो जाती है ,अनबन ।


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है ।


बिखरते रिश्तों में लग रहे हैं , सिर्फ इल्जाम 


मान ले अपनी गल्ती इतना नहीं है , कोई महान ताली दोनों हाथ से बजती है , मेरे भाई ,


इससे नहीं कोई अन्जान । फिर भी उलझे रिश्ते, मुश्किल से है सुलझते 


सब सिर्फ देते हैं ज्ञान । समय तू कितनी बेवफा है,


 स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है । चार दिन की जिंदगी फिर किस बात का इतना है गुरूर,


अकेले आये हैं , अकेले हैं , और अकेले ही जाना है सबसे दूर । 


समस्या इतनी विकराल क्यों हो जाती है ,


कि, हो जाते हैं हम मजबूर ,


मिटा लो सारे गिले - शिकवे ,


कहीं दर्द न बन जायें नासूर । 


समय तू कितनी बेवफा है, स्नेह के रिश्तों में भी बाकी नहीं अब वफा है ।


 


 


कविता -4


*आज की शूर्पणखा*


1.नाक उसकी थी कटी, नकटे हम हो गए ।


लाज उसने थी गिरायी,


निर्लज्ज हम बन गए ।


कटी नाक और फ टी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने चली है होली ।


2 .त्रेतायुग की शुर्पणखा को हम कहते थे बेशर्म,


आज की शूर्पणखाओ को लोग कहते है जानेमन।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


3. रावण राज के लिए 


वह बन गयी थी अभिशाप,


हमारे समाज के लिए 


आज है वह सबसे बड़ा पाप ।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


4.पर्दे पर नाचती नंगी महिलाएं,


नारी जाति को कलंकित करती अदाएं ,


नव पीढ़ी के जीवन में भरती वासनाएं,


हर युग मे रहेंगी ये नकटी शूर्पणखाये,


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


5.भारतीयता को भूल संस्कारो को कर सलाम,


पाश्चात्य फेशेंन की बन गयी है गुलाम,


लज्जा से सजी पूजा सी होती थी पवित्र,


आज नंगापन बन गया है उसका चरित्र।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


6.दुख होता है आज देखकर उनका यह रूप,


समाज को बनाने वाली क्यों हो गयी इतनी कुरूप।


कटी नाक और फटी चोली,


आज की शूर्पणखा खेलने


चली है होली।


 


 


 


कविता -5


_*"CORONA VIRUS का कहर"*_


 


भागती हुई ज़िन्दगी थम गयी;


समय के हाथों बेबस हो गयी;


किसने सोच था,यह दिन भी आएगा;


एक छोटे से *Virus* से विश्व तबाह हो जाएगा।


 


काल बनकर *Corona* सबको निगल रही;


समृद्ध देशों की शान भी मिट्टी में मिल गयी;


प्रलय के इस मंज़र में दुनिया थम गयी;


दहशत आज दिलो में घर कर गयी।


 


घर के अंदर आज कैद हो कर रह गयी है जिंदगी;


दिल से कर लो अब, तुम भी खुदा की बंदगी;


*Lockdown* के समय में न फैलाओ फ़िज़ूल दरिंदगी;


समय नही है प्यारो अब साफ कर लो दिलो से गंदगी।


 


नमन उनको जो हमे बचाने चल पड़े;


डॉक्टर , पुलिस और सफाई कर्मचारी *COVID-19* से लड़ पड़े;


सलाह मोदी जी की मान कर, हम घर पर ही रहे अड़े;


मुसीबत की इस घड़ी मे हम सब एक साथ रहे खड़े।


 


तुझे भी हरा कर हम हो जाएंगे मस्त ;


बस आप अपने हौसलो को न होने दो पस्त; 


घबराकर सब बिल्कुल भी डरो ना; 


दम नही कि, हमारा बिगाड़े कुछ *Corona*।


 


 *ABHA GUPTA*


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...