काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार डॉ.दीप्ति गौड़ ‘दीप’  ग्वालियर (म.प्र.) भारत


सम्प्रति- शासकीय शिक्षिका


विधा - गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, हाइकू,कहानी,लेख,निबंध,समीक्षा |


ईमेल- gaurdeepti2012@gmail.com


प्रकाशन- काव्य संग्रह ‘देहरी का दीप’,शिक्षा क्षेत्र की 20 पुस्तकों का प्रकाशन,अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में सहभागिता, आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं अन्य चैनल्स पर काव्य पाठ का प्रसारण ।


सम्मान-सर्वांगीण दक्षता हेतू भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक,विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड, "नेशन बिल्डर अवॉर्ड", राष्ट्रीय लक्ष्मीबाई काव्य भूषण सम्मान , “ग्वालियर गौरव सम्मान”, “अद्वितीय युवा प्रतिभा” “शब्द-सृजन सम्मान”,तेजस्विनी सम्मान,राष्ट्रीय शौर्य काव्य अलंकरण आदि से सम्मानित l शिक्षण कार्य में पर्यावरण गीत, दोहे, हाइकु, खगोल जागरुकता, मद्य निषेध आदि से संबंधित काव्य का प्रयोग नवाचार के रूप में कर रही हैं । 


ब्लॉग- अनुभूति के छंद कवयित्री डॉ. दीप्ति गौड़ ‘दीप’


 


कविता-1


हमने दुनिया के गम उठाए हैं 


हमने दुनिया के गम उठाए हैं ।


तब कहीं रोशनी में आए हैं ।


ये जो परछाईयां सिसकती हैं,


मेरी मजबूरियों के साए हैं ।


अब किसी पर यकीं नहीं होता ,


हमने इतने फरेब खाए हैं ।


चार दिन के लिए ज़माने में ,


 ज़िंदगानी उधार लाए हैं ।


ये जहां कितना बेमुरब्बत है, 


चोट खाकर ही जान पाए हैं ।


इक अंधेरा मिटा नहीं दिल का ,


“दीप”हमने बहुत जलाए हैं


 


जिंदगी तुझसे शिकायत है मुझे 


 


जिंदगी तुझसे शिकायत है मुझे l


चंद खुशियों की जरूरत है मुझे l


 


कैसा बादल है बरसता ही नहीं,


प्यार की बूंद की चाहत है मुझे l


 


दिल की धड़कन भी उनसे कहती है,


पास आने की इजाज़त है मुझे l


 


मैं ज़माने की तरफ क्या देखूं ,


उनकी सूरत ही तो जन्नत है मुझे l


 


हसरतों के गुलाब खिलते हैं ,


इन बगीचों की जरूरत है मुझे l


 


कब तलक ‘दीप’ को सताओगेे


हँस के कह दो कि मुहब्बत है मुझे l


 


बात होती है जो प्यार में 


 


बात होती है जो प्यार में,


वो नहीं होती तकरार में ।


हो रहा दो दिलों का मिलन ,


आ रहा लुत्फ़ इस बार में ।


फूल-सा है मुलायम बदन ,


तिल भी चुभता है रुखसार में।


जब सरकती है चिलमन कोई ,


लुत्फ़ आता है दीदार में ।


“दीप “मेरा वो महबूब है ,


छोड़ सकता न मझधार में ।


 


हवायें गुनगुनाती हैं


                                      


हवायें गुनगुनाती हैं बहारें मुस्कुराती हैं l


कोई आया है परदेशी खबर सखियां सुनाती हैं l


 


नज़र भर देखने की धुन में पागल हो गई आंखें,


मेरे पैरों की पायल भी मिलन के गीत गाती है l


 


पपीहा बोलता है बरगदों की डाल पर बैठा,


गुलाबी चूड़ियां सुन कर खुशी से खनखनाती है l


 


किसी का नाम लिख रखा है मेहंदी से हथेली पर,


जिसे पढ़कर सभी सखियां हकीकत जान जाती हैं l


 


लगा दीवार पे दर्पण दिखाता रूप यौवन का,


हुई मैं ‘दीप’ दीवानी मुझे यादें सताती हैं l


 


 दिल आशिकाना बन जाएगा


 


दिल मेरा है तन्हा तन्हा, 


कोई फ़साना बन जाएगा l


उनसे नजरें मिलती रहीं तो, 


दिल आशिकाना बन जाएगा l


मेरे अल्फाज़ो में कोई, 


बहर बिठा दो प्यारी-सी,


छेड़ दो दिल से कोई तरन्नुम 


एक तराना बन जाएगा l


सारा कुसूर जमाने का था 


ना थी मेरी कोई खता,


बन जाओ तुम मेरे हमदम 


इक आशियाना बन जाएगा l


लब मेरे खामोश है लेकिन


निकलेगी जिस रोज़ दुआ,


राह के कोई फ़क़ीरों जैसा, 


इक नजराना बन जाएगा l


फसले-गुल में हमने बुलाया , 


है दीदार की हमको तलब,


गजलों की महफिल है शहर में, 


यही बहाना बन जाएगा l


दिल के नशेमन में ये सोचकर 


जगह बनाई थी हमने ,


‘दीप’ किसी दिन अपना भी तो 


हक मालिकाना बन जाएगा l


रचनाकार


डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप"


विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड 2018 से सम्मानित


शिक्षाविद् एवम् साहित्यकार


ग्वालियर (म.प्र.)भारत


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