काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार संतोषी दीछित -कानपुर

संतोषी दीछित -कानपुर


विधा-अवधी लोकगीत,रचनायें ,हिन्दी गज़ल ,गीत ,मुक्त लेखन,


उपलब्धि ,-तुलसी साहित्य सम्मान ,अतुल माहेश्वरी सम्मान अमर उजाला,कई प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मान प्राप्त,प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में प्रकाशित रचनायें,वटीवी चैनल पर प्रसारण,


काब्य यात्रा-2वर्ष


 


 


बहुत नीक कीन्हो,जो ठेका खोलि दीन्हो,


देश अशान्त रहे ,मूलौ घर मा तो रहे शान्ति


पैइसा कमावेक बरे ,घर की शान्ति छीनि लीन्हो,


बहुत नीक-----


 


अरे फिर ते झूमत अइहें ,नाली मा गिरिहें


करिहें गाली गलौज,बर्तन बेचिहें ,अबे तो 


करउनाहे फैइला है,तुम तो नरक मा ढकेल दीन्हो 


बहुत नीक-----


 


ऐइसेह नहिन खायेक नहिन ठेकान,बन्द हैं 


स्कूल औ राशन की दुकान,डाक्टर बैइठ नही 


रहे कहूं,मन्दिर के पट बन्द है,पाषाण होइ गे 


भगवान,लेकिन दारू तो,भइया है जरूरी 


नशेबाजन के है मजबूरी,चाहे देश होइ जावे 


बरबाद,लेकिन कउनो फरक नहिन तुमका तुम 


कहुक न चीन्हो


बहुत नीक-------


 


अबै का है अब जमिके फैइली करउना फिर 


न रोयओ रोउना,


जिनके छूटि गै रहै,वऊ लेक बरे दारू ,दुकानन 


के आगे बिछाये हैं बिछउना 


अब का है अब जमिके ऐश है,चाहे फिर ते बरबाद


होइ जाये देश है,कुछ कऱउना बरबाद कर दिहिस 


कुछ तुम बरबाद कर दीन्हो,


 


बहुत नीक ---


 


 


काविता 2


शीर्षक-हमार अवधी


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हमारि अवधी मा सब कुछ पहियो-2


 


बाबा पहियो अजिया पहियो 


अम्मा पहियो बप्पा पहियो 


पहियो भइया भउजी 


हमार ----


सांझ पहियो विहाने पहियो पहुड़े रहे 


उताने पहियो,पहियो ,पाहुन पनहि 


हमार--


चूल्हा पहियो चउका पहियो,तरकारिन


मा लउका ,पहियो,पहियो,पिसान अउ ताठी 


हमार---


दइउ का तुम गरजत पहियो बिजुरि का 


चमकत पहियो,पहियो रतिया कजरी 


हमार---


लढ़िया पहियो ,बैलवा पहियो,घोड़ा पहियो 


खड़खड़ा पहियों,पहियो भैंइसी,लैरवा 


हमार---


जोन्ढी पहियो ,पनेथी पहियो ,गुल्लू पहियो,


अलउरी पहियो,पहियो जउर केरि जउरी 


हमार---


कन्डा पहियो ,चैइला पहियो ,घूरे क्यार 


मइला पहियो ,पहियो नापदान ,खरही,


हमार--- 


नीमी क्यार नीमाहारा पहियो,भूसे क्यार 


भुसाहरा पहियो ,पहियो छपरा धन्नी 


हमार---


पानी का पनिहारिन पहियो ,चुड़ियन 


का चुड़िहारिन पहियो ,पहियोकामन


का नउनी 


हमार---


पानी भरै का कलसा पहियो,खीचै कुंआ ते 


इंडुरी पहियो,पहियों राब गुड़ पिन्नी 


हमार---


बियाव अउर बुल्लउआ पहियो,साथै 


क्यार सथउऱा,पहियो,पहियो बन्ना ,बन्नी 


हमार--


पहियो बिटेवा अउर लरिकवा ,लड़त 


मेहरिया अउर मंसवा ,पहियो ,गुत्थम 


गुत्थी ,


हमार ---


सूर पहियो,तुलसी पहियो,आल्हा पहियो 


लाला पहियो,पहियो तुम संतोषी ,


हमार----


संतोषी -कानपुर.


 


कविता 3


विनाश


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हे प्रभु जी तुमने धरती पर कैसी लीला रचाई है 


चारो तरफ मचा हाहा कारऔर मची तबाही है,


 


कहीं महामारी का है जोर ,कहीं युद्ध जैसे हालात


कहीं भूख ,बेगारी चीत्कार ,कहीं आ रहे चक्रवात,


 


अब तो पल पल हम सबको,मर मर कर जीना है ,


डर से भरा वर्ष ,दिन ,और काल महीना है,


 


जैसा बोया था हम सबने ,वही फसल है काट रहे,


जीवन जीने की ललक में ,अब मौत हैं बांट रहे,


 


कही आग कही पानी ,तो कहीं भूख है झेल रहे 


झूठे आश्वासनों को देकर ,हम सबको है,लूट रहे,


 


प्रकृति से खिलवाड़ करने का ,यही नतीजा है,


आज तक सृष्टि की माया से ,यहां कौन जीता है,


 


अब भी समय है ,समझो और सम्भल जाओ,


दिन विनाश के दूर नही् धरती माता झुंझलायी है,


 


कविता4


बहुत दिनों के बाद मेरा अवधी में श्रंगार गीत पढ़ें


 


तोरी सांवरि सुरतिया ,लुभाय गयी रे 


मोरे जियरा मां ,छुरिया चलाय गयी रे-2


 


नयना तोरे दुयी कजरारे,


चपल अउ चंचल कारे कारे,


तोरि चितवन बिजुरिया गिराय गई रे


तोरी----


 


चाल चले तो ,मधुवन ड्वाले,


कोयलिया सी बोली ब्वाले,


तोरि वानी मधुरता सुनाय गयी रे 


तोरी-----


 


केश राशि घन हवे लहरावे,


बारै मा गजरा हवै बल खावै,


तोको मोरी नजरिया लगाये गयी रे,


 


देखि के तोका नाचै मयूरा,


हरषि उठा झूमै मन मोरा , 


बरखा बूंदन ते प्रीतिया बरसाय गयी रे 


 


तोरी---


संतोषी दीछित-कानपुर


 


कविता 5


विकल मानवता पुकारे


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जिये हम किसके सहारे 


विकल मानवता पुकारे,


 


चहुं ओर तम है,उजियारे 


का भ्रम है,बढ़ता वेग मन में


है उद्धेग मन में,कैसे पाये किनारे 


विकल-----


निज अभिमान कितना,है अपनत्व


सपना,मित्थ्या संबधों में ,तोड़ना 


अनुबन्धों में ,जायें कंहा पे प्यारे,


विकल-----


जंहा देखो तिमिर है,जीवन इक


भंवर है,जो निकला बच गया वो,


सफर में अब समर है,किसे हम 


अब निहारें,


विकल-----


चलना काम अपना,जलना काम


अपना,कभी तो मेघ बरसेंगें ,


पड़ेगी फिर फुहारें ,


विकल-----


.



 


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