काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार छविंदर कुमार शिमला  हिमाचल

छविंदर कुमार


पिता श्री टेकाराम 


निवास शिमला 


पोस्ट : प्राध्यापक हिंदी 


शिक्षा : परास्नातक हिंदी पीएचडी प्रक्रिया में 


उम्र तैंतीस वर्ष


व्यवसाय - अध्यापन


प्रकाशन तीन शोध आलेख प्रकाशित 


विशेष योग्यता : नेट उत्तीर्ण हिंदी साहित्य 


राज्य पात्रता परीक्षा 


संपर्क नंबर -- 94185 -12979


 


 


आज की जिंदगी 


कल तक जिंदगी चलती थी मौन से


कुछ होता तो सोचते , चिंतन करते एकांत में


राह मिल जाती थी 


मंजिलें मिल जाती थी


पर आज की जिंदगी चलती है लोन से


पहले चलती थी मौन से


अब है फिदा लोन पर


गाड़ी , बंगला और ज़मीं खरीदी 


शादी में दहेज खरीदा 


किया दिखावा बड़ा


पूछा अब क्या हुआ ? 


आवाज आई ..........


किश्तें चुकाए जा रहा हुं


खून पसीने से कमाए जा रहा हुं 


वही दूसरों को देखकर 


ज्यों लंगूर को देखकर 


वानर भैया अपनी टांगें तुड़वाए जा रहा है


अब तो किश्तें भी चुकती नहीं 


स्वयं चुके जा रहा हुं


मूल खड़ा है अब बेटा ब्याज चुकाए जा रहा है 


बिक रहे हैं घर बार


वो लहराती गेहूं की डोरियां


क्यों कि साहब पहले जिंदगी चलती थी मौन से


आज चलती है लोन से


किश्तें चुकाए जा


बड़ा नाम कमाए जा 


जिससे पैसा लिया है 


उस भगवान के चरण दबाए जा 


दिखावे के चक्कर में राम नाम सत्य है दुहराए जा । "


 


 


 


गुमनाम कर ही लिया है तूने ए जिंदगी 


एक रस्म और कर दे 


मेरी सांसों को हवाले कर किसी के 


मुझे दुनिया से विदा कर दे


बेगुनाह कहते हैं लोग खुद को मगर गुनेहगार है सभी


मुझे खुद से अलग कर दे


जिंदगी तू भी एक खता कर दे 


किसे मालूम था कि बर्बादी अपनी कुछ ऐसी होगी 


जिसने बर्बाद किया है जिंदगी उसे भी खबर कर दे


जिंदा नहीं है हम 


हम जिंदा लाश बनकर रह गए हैं 


लोग सबूत मांगेंगे मौत का 


जिंदगी सांसों को जिस्म से अलग कर दे 


हाथ गए थे हम खुदा से मगर निराला की दास्तां और धनपतराय की दरिद्रता ने उम्मीद दे दी 


जाने अंजाने में हमने जो भी कहा


ए जिंदगी हमें माफ कर दे । " 


____________________________


 


 


" मची विश्व में कोरोना की हाहाकार है 


ये तो मनवा तेरी करनी की पुकार है 


सड़कें खाली , नगर खाली 


खाली हुए तेरी उम्मीदों के आशियाने सारे 


भूल बैठा था तू वह गांव की मूरत 


माटी की वह गंध 


हरे - भरे सरसों से भरे खेत 


वो बाजरे की बालियां 


बासमती की बिखरी वह सुगंध 


देश छोड़ा तू प्रदेश छोड़ा 


पहुंचा विदेश तू 


मिटी न तेरी लालसा 


करता रहा मनमानी 


दौलत की खातिर भूल गया मां की वो लोरियां 


बाप के कंधों पर ज्येष्ठ की तपती धूप में 


तेरी खातिर राशन की वो बोरियां 


भूलाया बहन का प्यार वह


भूल बैठा दादा - दादी का वो लाड़ प्यार 


आकाश में उड़ा , वहीं बैठ गया तू 


अब क्यों पछतावे मनवा 


ये तो न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण की मार है 


आज क्यों दूर देश में बैठा तू 


स्वदेश आने को आतुर है 


मच गई है त्राहि-त्राहि 


अपने को बचाने की 


घर वापस आने की 


विश्व के कोने-कोने में दूर बैठा 


क्यों रो रहा है तू 


पड़े हैं प्राण बचाने के लाले 


जब गया था तब नहीं सोचा तू 


फिर तो हजारों नहीं लाखों के फेर में पड़ा तू 


हिंद देश तो कुछ नहीं 


जो कुछ है वो विदेश है 


 


दूर देश की तो भाषा अच्छी, व्यवस्था अच्छी


अच्छी कमाई सबकी भलाई कहता था तू 


अब क्यों पछतावे मनवा ये तो तेरी करनी की मार है


कोरोना नहीं है ये ,तेरी ही करनी का रोना है 


क्यों डरता है ! क्यों आंसू धोता है !


अभी भी वक्त है मनवा 


उठ , जाग और सोच 


कदर कर उस मां की 


भारत मां की 


उस गांव की माटी की 


जिससे तू पला , बढ़ा हुआ "


   


     छविंदर कुमार 


पता देहात / मकड़चछा / डाकघर चाबा, तहसील / सुन्नी,जनपद/शिमला हिमाचल प्रदेश


 संपर्क नंबर


 ९४१८५ - १२९७९


 


 


 


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रोशन कुमार झा 


सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज , कोलकाता 


मो :- 6290640716


 


-:  वह बेटियां नारी है  !:-। कविता :-1


 


तुम्हारा और मेरा न, यह बेटियां हमारी है ,


पूजा करने योग्य सरस्वती, दुर्गा वही काली है !


कल भी , आज भी और भविष्य की भी वही लाली है ,


तो हे ! दुनिया वालों सहयोग करो ,वह बेटियां नारी है !


 


पढ़ने दो , बढ़ने दो जब तक वह कुँवारी है ,


जब-जब आपद आई है , तब-तब बेटियां ही संभाली है !


भंयकर रूप धारी है !


रानी लक्ष्मीबाई बनकर, बेटियां ही दुष्ट को मारी है ,


गर्व है हमें हर एक बेटियां पर , 


वह तेरी मेरी नहीं , वह बेटियां हमारी हैं !!


 


उसे स्वतंत्र रहने दो , उसी के लिए धरती की हरियाली है ,


बेटियां से ही सुख-सुविधा सारी है !


वह बिहारी न बंगाली वह दुनिया वाली है ,


इज़्ज़त करो यारों , वह बेटियां नारी है !!


 


बेटियां ही लक्ष्मी उसी से होली,ईद और दीवाली है ,


अभी जो कोरोना जैसी महामारी है !


उससे भी लड़ने के लिए बेटियां तैयारी है ,


हम रोशन बेटियां की रक्षा के लिए, 


आप सभी पाठकों के समक्ष बनें भिखारी है ,


मेरी भिक्षा यही है , कि बेटियां की इज़्ज़त करो


वह तेरी मेरी नहीं वह बेटियां हमारी हैं ।।


 


######### कविता :- 2 #######


 


-:  बेटियाँ तुम्हारी भलाई हो   !:-


 


मैं नमक रोटी खाऊं , पर तुम्हारे लिए मलाई हो ,


वही करूं हम रोशन जिससे तुम्हारी बेटियाँ भलाई हो !


बेटियाँ तुम्हारे लिए हमें जग से लड़ाई हो ,


आगे तुम चलना और तुम्हारे आगे मेरी कलाई हो !


 


ऐसा नियम हो ग़लत की पकड़ाई हो ,


वही पढ़ूं , जिसमें बहन और बेटियों की भलाई हो !


तुम बहन, बेटियाँ क्यों डराई हो ,


उठो , उठो तुम तो तिरंगा फहराई हो !!


 


मेरे लिए नहीं , तुम्हारे लिए मिठाई हो ,


सपना है मेरी, 


बेटियाँ की अपने मन से ही विदाई हो !


तब तक उसकी पढ़ाई हो ,


बहन की साथ निभाये , सिर्फ भारत का ही नहीं,


निभाने के लिए दुनिया का ऐसा भाई हो !


 


आगे बढ़ने से जो बेटियों को रोकें, उस पर कारवाई हो ,


उसी पर इतिहास बनें जो, बेटियों की सुख-सुविधा 


के लिए कुछ न कुछ बनवायी हो !


तुम बेटियाँ ही लक्ष्मी , तू ही धन लायी हो ,


आगे बढ़ बहन पीछे-पीछे हम तुम्हारा भाई हो !


 


####### (3) #####


 


-: आइए वीर हनुमान तोड़िए कोरोना की गुमान !:-


 


कोरोना भगाने में असफल रहा कला और विज्ञान ,


तब हम निर्धन रोशन का पुकार सुनिए भगवान !


आइए आप ही पवनपुत्र वीर हनुमान ,


और तोड़िए ये दुष्ट कोरोना की गुमान !!


 


साईकिल से हवाई जहाज तक बनायें इंसान ,


पर आज कोरोना जैसी मुसीबत में


व्यर्थ रहा हम मानव के ज्ञान !


कोरोना भगाने के लिए लगाकर आयें अनुमान ,


तब अब जल्दी आईयें रामभक्त वीर हनुमान !!


 


वह शक्ति दो घर पर रहकर सरकार के नीति नियम लूं मान ,


बंद पड़े हैं, हाट, बाज़ार , दुकान !


पर्वत लिए उठा , आप में है परम शक्ति हनुमान ,


तब कोरोना से दूर करों प्रभु ! ताकि हम भारतीय


फिर से नव जीवन पाकर करूं भारत मां की चुमान !!


 


मां सरस्वती की दया से लिखा हूं कविता,भले ही मैं


रोशन कोरोना में हो जाऊं कुर्बान ,


पर हे! राम अपने भक्त हनुमान के माध्यम से


लौटा दे धरती की मुस्कान !


ये सिर्फ हमारी नहीं, समस्त मानव जाति की है ज़ुबान ,


तब कोरोना भगाने के लिए सिर्फ एक बार आ जाओ


पवनपुत्र हनुमान !!


 


####### (4) #####


 


-: हम सब अतिथि है !:-


 


सब यहां अतिथि है ,


सुख-दुख से जीवन बीती है !


आना-जाना ही तो रीति है ,


अमीर हो या गरीब अंतिम संस्कार के लिए


तो यही मिट्टी है !!


 


जीव-जंतु हाथी और चींटी है ,


क्या कहूं मैं रोशन यह ज़िन्दगी भी मीठी है !


जन्म लिए तो मरने का भी एक तिथि है ,


क्या हम क्या आप , हम सभी यहां के अतिथि है !!


 


जो कल जवान रहें, वही आज बूढ़ा हुए ,


समय के साथ कृष्ण-राधा भी जुदा हुए !


अमृत भी विष, विष भी समय के साथ सुधा हुए ,


समय की बात है यारों , समय बदलते होशियार भी बेहूदा हुए !


 


एक मां की ही बेटा सम्पत्ति बांटने में भाग लेते ,


पत्नी आते ही मां-बाप को त्याग देते !


जिसे पाल पोस कर बड़ा करते वही संतान अंतिम


वक्त आग देते ,


सब मतलबी है यारों , सिर्फ अपना काम पर ही दिमाग़ देते !!


 


तो कोई दिमाग़ लगाकर भी हारा , कोई हार


के बाद भी जीती हैं ,


सफलता-असफलता ही तो जिन्दगी की नीति है !


जिंदगी पूजा पाठ,लेखन कार्य ,अर्थ व्यवस्था, संस्कृति


और राजनीति में ही बीती है ,


तब हम आप नहीं ,कहों यारों हम सब अतिथि है !!


 


####### (5 ) #####


 


-:  वह अब हैं न मेरी दिवानी !   !:-


 


हम जो कहें वह मानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !


उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं ,


दुनिया के लिए समंदर हूं , पर अपने पास 


पीने के लिए पानी नहीं !!


 


उसके अलावा मेरी कोई कहानी नहीं ,


जगा हुआ है मेरी सोई हुई वाणी नहीं !


अब लाभ- हानि नहीं ,


क्योंकि अब कोई मेरी दिवानी नहीं !!


 


उसके लिए हमसे बढ़कर कोई दानी नहीं ,


देते रहे, लेती रही उससे बढ़कर कोई स्यानी नहीं !


पता रहा छोड़कर जायेगी , फिर भी लुटाये हम रोशन


से बढ़कर कोई अज्ञानी नहीं ,


प्यार- मोहब्बत से जो दूर रहा उससे 


बढ़कर कोई ज्ञानी नहीं !!


 


हम रहें कुत्ता , वह कानी नहीं ,


सब कुछ देखी , फिर भी वह मुझे अपना मानी नहीं !


मुझे अपना बनाने के लिए वह कभी भी


अपने मन में ठानी नहीं ,


इसलिए वह आज मेरी रानी नहीं !!


 


  


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