कवि डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

आत्महत्याः उलझन या सुलझन 


 


दिनांकः १८.०६.२०१८


दिवसः गुरुवार 


विधाः गद्य 


 


"आत्महत्या उलझन या सुलझन" पटल द्वारा प्रदत्त आज का विषय अत्यन्त ही गंभीर , चिन्तनीय और अफ़सोसजनक है। 


आत्महत्या कायरों ,बुजदिलों, अकर्मण्य पलायनवादी, अधीरता , भयभीत मानसिकता और जीवन के संघर्षपथ से विरमित होने कि एक कायराना हटकण्डा है। संघर्ष,बाधा, कठिनाईयाँ , अवरोध , दुर्दीन व दुर्गम पथ -ये सब यायावर जीवन पथ के विविध सोपान हैं जिससे बुद्धि ,विवेक, सहिष्णुता , सत्य, अहिंसा, धैर्य,साहस और आत्मबल आदि संसाधनों से आरोहित किया जाता है। अगर सफलता इतनी आसानी से मिल जाती , तो फिर असफलता और उपर्युक्त बाधक सोपानों की कल्पना ही नहीं होती। याद रखनी चाहिए कि प्रारम्भ में झूठ, फसाद, छल ,कपट, ईर्ष्या, द्वेष आदि की ही जीत होती है। उनका प्रारम्भिक जीवन काल उन्नतिपरक, आनंददायक, विजयपथ पर अग्रसर, उन्मादक अहंकार से चूर होता है, परन्तु उनकी दुर्नीति, असत्य, प्रपंची क्षणिक सुखद पापों का मायाजाल का अंत अत्यन्त ही समूल विनाशक,महत् आपदा सह अवसादपूर्ण होता है। सत्य,.न्याय, धर्म , सदाचार, नैतिकता, मानवता की विजय संघर्षों के विविध कँटीले उबर खाबर दुर्गम पगदण्डियों के माध्यम से ही होकर होती है। हजारों लाखों वर्षों का इतिहास हमारे सामने प्रमाण रूप में विद्यमान है। कोई भी ऐसा,भूत,वर्तमान में बता दें जिनके जीवन में केवल सुख , सम्पदा ,यश,  


सम्मान ही मिलें हों। उनके जीवन में कभी दुःख ,शोक, पीड़ा, दीनता, अपमान, संघर्ष न मिला हो। उलझनें तो जीवन में सफलता का मार्गदर्शक है। मनुष्य कठिनाईयों,बाधाओं में ही सदैव सीखता है, समझता है, अपने रिश्तों , अनुबन्धों, मित्रों की पहचान करता है। ये आँधी,तूफ़ान, बाढ़- विभीषिका, भूकम्पन, भूस्खलन, ज्वालामुखी, विस्फोट, चक्रवात, भीषण गर्मी ,बरसात, जानलेवा कंपायमान ठंड और कोराना जैसी महामारी आदि प्राकृतिक प्रकोप  


आदि कठिनाईयाँ जीवन संघर्ष ही तो हैं जिसमें मनुष्य अपने आपको धीरज,साहस, बुद्धि बल, आत्मविश्वास और जीने की संकल्पित ध्येय को मन में रखकर मुसीबतों से बाहर निकलता है। जिनमें उपर्युक्त गुण का अभाव होता है ,वे उन्हें उलझन समझ हतोत्साहित हो आत्महत्या कर लेते हैं,या स्वयं ही कालकवलित हो जाते हैं।


मैं अपनी बात करता हूँ। बहुत गरीब पढ़े लिखे घर से आता हूँ। मेरे जीवन का उद्देश्य ही आइ.ए.एस बनना था। विज्ञान का मेधावी पटना साइंस कॉलेज का छात्र था। उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कला संकाय अर्थात् पटना कॉलेज में नामांकन ले इतिहास का छात्र बन गया। दो दो बार संघीय लोक सेवा आयोग की प्रारम्भिक और मेन (मुख्यलिखित) परीक्षा में सफलता प्राप्त की। साक्षात्कार में सफलता नहीं मिली। मैंने सोचा कि मेरी जिंदगी तो बर्बाद हो गई , सब कुछ खत्म हो गया, बड़े यत्न ,अहर्निश परिश्रम संघर्षों को सहते हुए , कभी भोजन किया कभी नहीं किया - ऐसी समस्याओं और उलझनों से लबालब मैंने दिनरात चार बर्षों तक लगा रहा।सोचा ,आत्महत्या कर लूँ। मेरे जीवन का कोई औचित्य नहीं। मैं किसी को मुँह दिखाने का काबिल नहीं। 


उस जमाने में आज की तकनीकी शिक्षा ,सोशल मीडिया, कम्प्यूटर मोबाईल आदि कुछ भी नहीं थे। वार्तालाप का माध्यम स्वतः मिलन या पोस्टकार्ड,अन्तर्देशीय लिफ़ाफ़ा या तार ही होते थे। ये सब अस्सी से नब्बे की दशक की बातें हैं। 


पटना वि.वि.के विभिन्न विभागाध्यक्षों को इस बात की खब़र मिली। उन सबने मुझे बुलाया, डाँटा, समझाया। केवल यू पी एस सी ही जीवन नहीं है। दुनिया में हजारों दरवाज़े हैं सफलता के। तुम मेधावी टॉपर विद्यार्थी हो, जे.एफ.आर. कर चुके हो, पी.एच.डी.करो। पागलपन छोड़ो। महीने भर वे समझाते रहे। अंततोगत्वा मैं पुनः अध्ययन और पी एच. डी हेतु तैयार हुआ। पैसों ,पैरबी घूस चापलूसी ,के मायाजाल में महाविद्यालय या वि।विद्यालय शिक्षक भी न बन सका। जीवन की दर्दनाक थपेड़ों में अपनी सारी अभिलाषा, सुकून, व वज़ूद ही लूट गया।फिर भी आत्महत्या नहींं की ।जो मिला उसी को विधातव्य समझ अपमानित होता हुआ भी जीवन के पथ पर अनवरत बढ़ रहा हूँ। ये अवदशा मेरे जैसे और मुझसे लाखों करोड़ों गुणा अधिक सारस्वत मेधावियों के जीवन में ऐसी घटनाएँ सदा से घटती आ रही हैं। 


आज किसान, वैज्ञानिक, मज़दूर, छात्र छात्राएँ ,माता,पिता,बहन, भाई ,प्राध्यापक,वकील, आइ ए एस ,आइ पी एस ,एलाइड , अभिनेता ,नेता सब थोड़ी सी उलझनों ,असफलता या अपमान को बर्दाश्त नहीं करते और फाँसी लगाकर ,नदी में कूदकर , रेल पटरी पर लेटकर, ज़हर खाकर और न जाने कितने दुस्साहसी तरकीबों से आत्महत्या के जघन्य कृत्य को कर अपने को स्वनामधन्य करने का कुकृत्य करते आ रहे हैं। आपका यह जीवन केवल आपका नहीं है, बल्कि आप पर परिवाल ,समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व मानवता का अधिकार है। आपको अपने साथ दूसरों के लिए ,समाज और देश के लिए जीना है। आपको मानवीय कर्तव्यों के निर्वहणार्थ जीना है। परन्तु दुःख और शर्म की बात है कि ये स्वार्थी लोग केवल अपने हितपूरणार्थ जीवन जीते हैं। इच्छा पूरी नहीं हुई, बाधाएँ ,आयी, कठिनाईयों और झंझावातों से गुज़रना क्या पड़ा, माँ- बाप, गुरु,मित्र,अधिकारी पति,पत्नी ,प्रेमी,प्रेमिका आदि कोई भी अनचाहे कुछ भी कहा, या असफल हुए, या बाधाएँ आयी ,सहनशक्ति, धैर्य, आत्मबल, और साहस के अभाव में भगौड़ा डरपोक बन आत्महत्या जैसी घिनौनी हरकत कर बैठते हैं। 


मैं इस तरह के कुकृत्य को उलझन नहीं मानता और न ही सुलझन मानता हूँ,वरन् एक दुर्बल, कमज़ोर , कायरता, और पलायनवादी मानता हूँ। संघर्ष ही जीवन समझो और वही सफलता की मूल है। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभूत विचार है। आपकी सहमति असहमति से मेरी सोच में कोई परिवर्तन नहीं आ सकता। 


 


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" की✍️ कलम से👉


नई दिल्ली


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