समाज
*समाज एक शिक्षक है--:*
जो हमें सलीके से जीना सिखाता है ।
जो हमें नियमों में रहना सिखाता है ।।
व्यहार बनाना और निभाना सिखाता है ।
समाज कायदे कानून बनाता है ।।
समाज एक शिक्षक है जो हमें ।
हमारी पहचान दिलाता है ।।
*समाज एक घरौंदा है--:*
जो हमें पालता है पोषता है ।
हममें संस्कारों के बीज बोता है ।।
हमें अपनों का महत्व बताता है ।
रिश्तें नातों में बंधना और निभाना सिखाता है ।।
समाज ही है जो हमें हमारा अस्तित्व बताता है ।।
*समाज एक आधार--:*
जो मानव के जीवन को सही दिशा ले जाता है ।
मानव को समाज का रहन सहन बताता है ।।
समाज ही है जो हमें मान सम्मान दिलाता है ।
समाज ही है वो जो इक अनजानी..
जगह पर हमारा आधार बन जाता है ।।
*समाज में रीति और रिवाज है ।*
*ज्यों गीतों में सुर और साज है ।।*
*समाज के बिना मानव का अस्तित्व ही नहीं ।*
*समाज ही तो मानवता का आगाज है ।।*
स्वरचित.....
कुं० जीतेश मिश्रा"शिवांगी"
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