*"सपने संजो दिये"*
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संगदिल में बीज प्यार के बो दिये,
प्यासी अँखियों में सपने संजो दिये,
रहते थे कभी अपनी गिरेबां में,
इश्क के सफर में मदहोश खो गये,
अनजानी लगती थी राहें जिंदगी,
रास्ते मुहब्बत पहचाने हो गये,
खड़ी थी शक दीवारें चारों तरफ,
वफ़ा के दरिया बीच सब डुबो दिये,
हकीकत से रूबरू होना है मुश्किल,
प्रेम बारिश हुई अरमां भिगो दिये।
मदन मोहन शर्मा 'सजल'
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