*कलम*
~~~~~
जिंदगी के रंग भरती है कलम,
कदम-दर-कदम दामन पकड़ चलती है कलम,
जज्बातों के उड़नखटोले में बेतहाशा उड़ती गगन में,
दोगले चेहरों से नकली नकाबों को पलटती है कलम,
अवसाद भरे दो तन्हा दिलों की अधूरी दास्तान,
प्रेम में अविरल दरिया सी मचलती है कलम,
जख्मी होती है जब मानवता, तार-तार हो इंसानियत,
धधकती चिता के माफिक हर पल जलती है कलम,
तुलसी, सूर, रहीम, रसखान, जायसी, प्रेमचंद,
रामचरित्र, महाभारत, छंद, चौपाई रचती है कलम,
कौन कहता है कि पंचतत्व है सबसे ताकतवर,
इन सबको अपनी नोंक पर रखती है कलम,
"सजल" जीवन को मृत्यु में और मौत को जीवन में,
होकर बेपरवाह फैसलों में बदलती है कलम।
🌹🌿🌾✍✍🌾🌿🌹
मदन मोहन शर्मा "सजल"
कोटा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें