नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

---------पिता हमारे----


 


जब कही कभी परेशान हो जाता


ख्वाबो और ख्यालों यादो मन


के भावों पर छा जाते 


भटक जाऊं मूल्यों के जीवन


पथ से राह दिखाते ।।


 


पिता हमारे


भगवान मैं उनकी संतान।।


 


याद हमे है बचपन अपना


मैं उनके सपनो का संसार।


मेरी खुशियो कि खातिर जाने


कितने कष्ट उठाते ना थकते


ना हारते हर कदम नया उत्साह।


पिता हमारे भगवन मैं उनकी


संतान।।


 


जब तक रहते साथ जीवन सरल


सुगम कठिनाई का ना नाम।


जब कभी भी मन मस्तिष्क नज़रों से ओझल हो जाते जीवन राहो


में अँधेरा हो जाता दुर्गम जीवन 


हो जाता झट प्रत्यक्ष मन मंदिर


में प्रगट हो जाते जीवन के अंधेरो


में उजाले की दीप जला कर हो जाते अंतर्ध्यान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


मेरा सामर्थ उनका आर्शीवाद माद्री ताकत सम्बल उनका


आर्शीवाद ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी


संतान।।


 


पचपन में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया । जीवन के कुरु


क्षेत्र के कर्म, ज्ञान दीप जलाया


जीवन मूल्य ,मतलब सिद्धान्त


बताया हारना नहीं जीतना सिखाया जो भी उनकी पूंजी


जीवन कर दिया मुझ पर कुर्बान।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


गिरना नहीं सम्भलना सिखाया


निति, नियत, ईमान दिया मर्म


मर्यादा दीया मूल्य मूल्यवा।


पिता हमारे भगवान् मैं उनकी


संतान।


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


 


फिर भी उनको लगता अब भी


मै बच्चा हूँ अबोध ।     


 


पल प्रहर दिन रात मेरी सुख दुःख की चिन्ता 


करते निवारण का पराक्रम का


धन्य ,धरोहर ,ध्यान 


पिता हमारे भगवान मै उनकी


संतान।।


चाहे जिस जाती ,धर्म ,प्राणी का


होऊं प्राण उनके ही बीज का बृक्ष बनु माँ के कोख में पलु ।


माँ की ममता के आँचल का वात्सल्य माँ भारती के आँगन


की किलकारी पुत्र मैं आज्ञाकारी


श्रवण,राम ,पशुराम ।


उनके चरणों की धूलि मेरे मस्तक


का अभिमान ।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


उनकी साँसे उनकी धड़कन का


मेरा प्राण दम निकले मेरा पितृ 


भक्ति में गर अवसर आ जाये


उनकी खातिर दे दूँ उनका ही


अपना प्राण।।


पिता हमारे भगवान मैं उनकी संतान।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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