-----श्रवण के प्रथम सोमवार--
अविनाशी पर्वत वासी
त्रिशूल ,डमरू ,मृगछाला धारी
तन भस्म रमाये कन्द मूल
फल खाये वनवासी।।
काल महाकाल रूद्र रौद्र
विकट विकराल श्मसान
की आग आदि मध्य अनंत
बैराग्य बैरागी ।।
जटाओं में गंगा चन्दा
नीलकंठ घट घट के वासी
करुणा दया छमाँ के सागर
क्रोधाग्नि त्रिनेत्र धारी।।
पास नहीं कुछ भी जो
कुछ मांगे दुनियां देते त्रिपुरारी
गले मुंड की माला नंदी सैर सवारी
नाग गले में लिपटे वेश उदासी।।
शिव शंकर ,कैलाशपति ,भोले
शंकर ,शिवशंकर शिव शम्भू
सदा सहाय शिवाय मम उर वासी।।
अशुभ रूप भुत ,प्रेत ,पिचास,
डाकिनी ,हाकिनी, पिचसिनी
संग संग गौरा पार्वती।।
भुतनाथ,भैरों ,काली गण
तेरे प्रभु तू औघड़ दानी।।
अघोर की आराधना श्मशान
की वंदना संसार की संरचना हैं
तो प्राण प्राणी है।।
मृत्यु का उत्सव उत्साह
सृष्टि का उद्भव विकास
विनाश है।।
काम, क्रोध ,मोह ,मद लोभ का त्याग
शुभ मंगल का गणपति गान है
मृत्युंजय है मोक्ष मार्ग है।।
विशेश्वर उमा पति वैद्य नाथ है।।
शोक ,रोग ,भय ,भ्रम विनासक
त्रिदेव शक्ति का मान है।।
अकाल नहीं काल हर हर महाकाल है स्वर सामराज्य
का ओंकार है।।
ओंकारेश्वर ममलेश्वर सयुक्त
ज्योति आपकी जगत कल्याण
का स्त्रोत वेद पुराण है।।
भीमाशंकर ,नागेश्वर ,सोमनाथ है
रामेश्वर, त्रमकेश्वर ,अनाथो का
नाथ विश्वनाथ है।।
मल्लिकार्जुन ब्रमणेभ्यो ,घृणेश्वर
शिवा शिवम् ताण्डवं कुलग्राम है।।
बबम बबम बम भोले बम लहरी
प्रिय धतूर भांग है।।
नमामि शंकरम् रूद्र रौद्र अष्टकम
शिवा सत्य आत्म प्रकाश है
नमामि शंकरम् प्रणामी शंकरम्
नमामि शंकरम्।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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