जिंदगी का समर्पण कर
देता है जब मानव
उद्देश् पथ पर विलग
विलय जिंदगी हो जाती है।।
उद्देश्य के उद्गम और शिखरतम्
तक।
स्वयं स्वीकार साकार उद्देश्य पथ
सच्चाई अवनि आकाश की
ऊंचाई।।
व्यक्ति का व्यक्तित्व समर्पित
समर्पण का वर्तमान इतिहास।
सत्य समर्पण के गर्भ से जन्म
नव चेतना की नयी
जागृति ,वर्तमान भविष्य
के मूल्यों का सिद्धांत।।
सत्य समर्पण मंगलकारी
क्लेश नाश का संचारी विस्मयकारी।
समर्पण जागृत होता मन की
अनंत धरा के झंझावात, तूफानों
के अंतर द्वन्द मंथन मति।।
समर्पण एक सार्थक योग
मानव का कल्याणकारी।
समर्पण के स्वरुप बहुत है
नैतिकता से च्युत हो जाना
विमुख कर्तव्यों से होकर
पतित पथ भ्रष्ट हो जाना
समर्पण अंतर मन की ज्वाला।।
प्यास ,आस ,विश्वाश
मूल्यों ,मर्यादाओं की नैतिकता
में विलय विलीन हो जाना।
भाग्य बदल लेता स्वयं मानव
अपना भगवान् का मिल जाना।।
समर्पण आकर्षण की आस्था
का स्वर साम्राज् सत्कार।
घनघोर निराशा के बादल जब
छा जाते आशाओ के मार्ग
अवरुद्ध हो जाते।।
संकल्प, समर्पण नई क्रांति का
नव सूर्योदय संध्या लाते।
अमंगल , मंगल ,मृग मरीचिका
विल्पव ,भ्रम ,भय भयंकर
दूर भगाते ।।
अस्तित्व ,अस्ति का मिट जाना
व्यक्तित्व, व्यक्ति की पहचान
परिवर्तन सत्य समर्पण।
पत्थर में भगवान् बोलते प्राणी
में प्राण दीखते मिथ्य यह संसार।।
समर्पण का अति सुन्दर भाव
लूट जाना, मिट जाना जीवन
सम्पत्ति का, बैभव बिलिन हो जाना समपर्ण हो जाना।
समर्पण से प्रेम जाग्रत प्रेम में
आशाओं का संचार ।
आशाओं के आसमान में विश्वस
का प्रभा प्रवाह ।।
विश्वाश के प्रभा प्रवाह से अचल
अटल अडिग आस्था की अवनि
अविष्कार । समर्पण की वास्तविकता
परम् अलौकिक प्रकाश।
प्रकाश की किरणों का युग
ब्रह्माण्ड नया सत्कार ।।
हे मानव मर्म मर्यादा के जीवन
मूल्यों का संचय कर लो।
जीवन की यथार्थता सच साबित
कर दो ।।
जीवन पथ का जो भी हो उद्देश्य तुम्हारा उद्देश्य पथ के पथ पथिक
तुम ।
उद्देश्यों के मूल्यों में स्वयं
शक्ति की भक्ति समर्पण कर दो
मिट जाएगा अँधेरा।।
उज्वल निर्मल मन काया की
माया के उजियारे से रौशन युग
कर दो।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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