तुम मिलना मुझे जब भी
दिल पुकारे
चाहतों की राह में अरमानो की
आश में मुस्कानों के मुकाम पे।
तुम मिलना मुझे चलती जिंदगी
में विखर जाऊं ,मंजिलों से भटक
जाऊं ,मकसद की मासूका मकसद जिंदगी के अंधियारे उम्मीद उजालो में।।
तुम मिलना मुझे तुफान भंवर
में उलझ जाये जिंदगी की कश्ती।
डगमगाने डूबने लगे किश्ती की हस्ती।
मझधार तूफानों की मसक्कत मौसिकी
पतवार बनकर किनारों में।।
तुम मिलना मुझे जज्बे के उठते
ज्वार में धड़कन की हर सांस में।
लम्हों उदास में थकती ,हारती
जिंदगी के विजय के प्रवाह उत्साह में।।
तुम मिलना मुझे जब जिंदगी का
कारवां साथ छोड़ दे तन्हाई में परछाई
भी दामन छोड़ दे ।
जिंदगी बोझ लगे तन्हाई की हद हँसी मस्ती
जिंदगी की आवाज में।।
बचपन से तुझे सवारता, जवाँ जज्बे में उतारता ,जिन्दंगी की
की एहसास जान इज़्ज़त ईमान।
क्या कहूँ हिम्मत या हौसला
इरादा या इल्म माँ बाप गुरुओ का आशीर्वाद सच्चाई।
तुम मिलना मुझे मौका मुबारख
मुकाम में।।
खुदा के नूर में जन्नत की हूर में
स्वर ईश्वर की आवाज़ में अपने
अलग नाज़ अन्दाज़ में ।
हर कदम ताल में दोजख की सजा अपराध में।
तुम मिलना मुझे जिंदगी के फलसफा फसानों अपसानो की
चाह की राह में।।
तुम मिलना मुझे मेरी पैदाईस
की पहली आवाज़ में मेरे जनाजे
के कंधे चार में प्राण में।।
तुम मिलना मुझे प्यार में यार में
रिश्ते नातो परिवार में घर संसार
में दोस्ती दुश्मनी के इंतज़ार इज़हार में।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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