जननी जन्म भूमि का
जीवन यह उधार ।
माँ भारती की सेवा मे
जीना मारना जीवन का
परम् सत्य सत्कार।।
माँ के चरणों में शीश
चढाऊँ पाऊं जनम जीतनी बार
माँ का स्वाभिमान तिरंगा
कफ़न हमारा सद्कर्मो
का सौभाग्य।।
आँख दिखाए जो भी
माँ को शान में करे गुस्तगी
चाहे जो भी हो चाहे जितना भी
ताकतवर हो रक्त से शत्रु
का तर्पण करूँ मैं बारम्बार।।
मेरे पूर्वज है राम ,कृष्ण,
परशुराम अन्यायी अत्याचारी के
काल।
धर्म युद्ध का कुरुक्षेत्र है मेरा
मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारा ,चर्च
धर्म युद्ध लिये जीवन का कर्म
क्षेत्र कुरुक्षेत्र का मैदान।।
अर्जुन युवा को ओज माँ
भारती की हर संतान।
गांडीव की प्रत्यंचा पंचजनन्य
का शंख नाद।।
माँ भारती के नौजवान की
गर्जना से आ जाए भूचाल
विष्णु गुप्त चाणक्य चन्द्रगुप्त
अखंड माँ भारती के आँचल के
संग्राम संकल्प युग प्रेरणा
स्वाभिमान।।
मेरी माँ करुणा ममता की सागर
गागर अमन प्रेम शांति का पाठ
पढ़ाया अमन प्रेम शांति के दुश्मन का काल ढाल का शत्र
शात्र सिखाया।।
अपने लालन पालन के पल
प्रतिपल में मान सम्मान से
जीना मारना सिखलाया।।
माँ भारती की आरती पूजा
बंदन पल प्रहर सुबह और शाम।
दिन और रात करते वीर सपूत
वीरों को जनने वाली संस्कार
संस्कृति की शिक्षा देने वाली
माँ भारती के लिये पल प्रति न्योछावर करने को प्राण।।
माँ भारती के वीर सपूतों के
ना जाने ही कितने नाम
हंसते हंसते माँ की चरणों में
कर दिया खुद के प्राणों का बलिदान।।
त्याग तपश्या की भूमि की है यही पुकार उठो मेरे
बीर सपूतो नौजवान।
आज मांगती हूँ मैं तुमसे
देती हूँ कस्मे ।।
लाड प्यार
ना हो मेरा बेकार
सीमाओं पे आक्रांता ने दी
है तुमको ललकार ।
भरना होगा तुमको हुंकार
गर्जना नहीं सिर्फ करना होगा पौरुषता
पराक्रम से आक्रांता का
मान मर्दन संघार ।।
मातृभूमि माँ भारती की
मर्यादा का रखना होगा मान।
अक्क्षुण अभ्यय निर्भय निर्विकार
माँ भारती मातृभूमि के तुम
दुलार नौजवान।।
स्वाभिमान तिरंगा का सर पे बांधे
सफा पगड़ी जीवन मूल्यों उद्देश्यों का कफ़न तिरंगा साथ।।
जय माँ भारती जननी जन्म भूमि
के बंदन अभिनन्दन की सांसे धड़कन प्राण।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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