अँधेरा छा जाता है तब
जीवन में अरमानो का अवनि आकाश अधूरा रह जाता है।।
आँचल ममता की किलकारी
गोद माँ का साया ही रह जाता है।।
चलते वक्त निरंतर का भरम भस्म
हो जाता है
कभी अकेले ना होंगे हम
पल भर में चकनाचूर हो जाता
है माँ की यादों का साया ही
रह जाता है।।
चली गयी यादें देकर छाया की
काया देकर छलि गयी जीवन
जन्म मृत्यु के अंतर का चक्र काल
रह जाता है।।
अपनी संतानो की खातिर कितने
ही दुःख दर्द को गले लगाया
अंतर मन की पीड़ा को ढाल हथियार ढाल बनाया।।
किसको ये मालुम छूट जाएगा
मूल्यों मर्यादा के पथ का हाथ
साथ जिसने चलना सिखलाया
शब्दों रिश्तों से परिचय करवाया
जीवन समाज का मर्म बताया
काया की माया आज।।
पता नहीं था उसको भी जिस
बाग की बागवाँ है वो आज बगिया के
किसलय कोमल उसकी यादो
भावों के दिन रात लिपटा सिमटा
वर्तमान अतीत हो जायेगा।।
संग रह जाता है गुजरे बचपन
जवानी की दौलत माँ के दौलत
दुलार की धन्य धरोहर का प्रति
पल खजाना।।
बचपन की लोरी रुखा सुखा भी
कौर छप्पन भोग खुद भूखे रह जाना अपने
लाडले के संग सो जाना।।
सपने माँ के आँखे उम्मीदों की
संतानो के माँ का इतराना।।
कही कभी आहत हो जाऊं ईश्वर
अल्ला से लड़ जाना माँ के ह्रदय
भाव से उठती ऐसी ज्वाला
दुर्गा काली रौद्र रूप काल कराला।।
आसमान की बिजली सी गिरती
चाहे क्यों ना हो कोख का रखवाला सुहाग से संतानो के शुख चैन से नहीं कई समझौता
उसकी दुनियां उसकी संतान
ईश्वर अल्लाह खुदा भगवान्।।
माँ तू जननी है जन्म भूमि की
महिमा गरिमा प्यास बूँद है
आस विश्वास है समाज राष्ट्र की
निर्माती मानव की अर्थ आधार है।।
भगवान् का भाग्य बनाती कौसल्या है तो राम है दुनियां में
देवो के अस्तित्व की माता देवकी
यशोदा कुरुक्षेत्र के कर्म ज्ञान की
कोख अभ्युदय गीता कुरान है।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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