नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

दर्द ,जख्मों का हिसाब 


इंसान लम्हा लम्हा करता।


कभी रिश्ते ,नातो के दिये जख्मो


को कोसता तो कभी खुद के


करम खुदा भगवान् को


कोसता।।


 


अंधे इंसान को पता ही नहीं


कुछ देखता ही नहीं।            


वाकये


का किरदार दुनियां में मज़ाक


गम, ख़ुशी के आसु पीता।


खुद के।गुनाहों का बोझ गैरों पे कसीदे पढ़ता।।


 


दर्द का इंसान जिंदगी से रिश्ता


जख्म दीखते नहीं खून रिसते


नहीं कराह में आहे भरता।।


 


जुदाई का गम कुछ चाह की


राह से भटक जाने का गम 


मुफलिसी की मसक्कत 


कभी शर्मशार का दर्द ।।


 


खुद के गुनाहों के लिये खुदा


से माफ़ी की अर्जी करता


दर्द का दरिंदा दर्द में रोता।।


 


दर्द बांटता जैसे मिलाद का


मलीदा


नासमझ को इल्म


ही नहीं होनी हैं तेरी भी होनी है बोटी बोटी


तेरे हर दुकडे से दर्द की चीख


जहाँ को सिख कसीदा।।


 


मगर इंसान की याद तो शमशान,


कब्रिस्तान की तरह माईयत उठाता फिर गुनाहों की अपनी


दुनियां में लौट जाता।।


 


जिंदगी अजीब फलसफा नेकी


गायब गुनाहों में इज़ाफ़ा


हर गुनाह से पहले खुदा को।


जरूर याद करता ।             


 


कसाई हर


जबह से पहले अल्ला हो अकबर 


खुदा को हाजिर नाजिर मान कर


जबह करता।।


 


दुनियां में दर्द का सौदागर 


दर्दो का बेरहम बादशाह


खुद के दर्द में खुदा के लिये


रहम की दुआ मांगता।।


 


मंदिर ,मस्जिद पिर ,पैगम्बर


के हुजूर में हाजिरी देता ।


ख्वाहिसों की आपा धापी में


भूल जाता जो दिया है मिलेगा


वही हिसाब बराबर जिंदगी खता बही।।


 


जज्बे ,जज्बात की जिंदगी 


दर्द भी अहम खुद के दर्दो छुपाता


जहाँ में बेनूर की हंसी में दिल के


छालो के आंसू बहाता खुद को


फुसलाता ।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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