नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

गुजरती जिंदगी अरमान अधूरे


बदलती दुनियां इंसान अधूरे


जिंदगी की दौड़ मुश्किलें बहुत


बदलता वक्त सच सपने अधूरे।।


इंसान की चाहता दुनियां दामन


में समेटे


राहों में भटकता मंजिलों का पता 


पूछता


एक दूजे की लाश की सीड़ी 


इंसानियत के रिश्तों में ईमान अधूरे।।


गुरुर इंसान का जूनून 


जूनून जिंदगी का सुरूर  


दुनियां तिज़ारत का बाज़ार  


दुनियां के बाज़ार में बिकते सपनें


आधे अधूरे।।


तोहमद ही तौफा खुनी पंजो की


दौलत


मोल बेमोल सस्ती महँगी बिक जाती है हर दौलत


बिन मांगे मिल जाती कभी मोहलत कभी मांगे नहीं मिलती


मोहलत।


जकात कभी दाम आधे अधूरे।।


प्यार व्यापार मोहब्बत धोखा


शातिर की चाल इंसानियत का सोसा


जख्म दर्द को मरहम का भी मौका


नाम बदनाम के पहचान अधूरे।।


 


हर जुगत जुगाड़ इल्म उखाड़ने का


मरी खाल से तक़दीर सवारने का


कोशिशे बहुत मगर कामयाब अधूरे।। झील में कमल का खिलना 


फूल का निखारना भौरों


का चलना मचलना 


सुबह सूरज का नया जोश 


बयां जिंदगी की सच्चाई


गम के सायों में दिन का उजाला


अधूरा।।


जिंदगी जंग बन गयी है साँसों


में सिमटती


पत्थरों का दिल धड़कता ही नहीं


पत्थरों के दिल में खुदा का दीदार


नहीं 


पत्थरों में चाहत का भगवान अधूरा।।


कस्मे वादे प्यार वफ़ा बाते ही बात


हकीकत हद से दूर निकलते  


मुस्कुराता है इंसान खोखली हंसी


कोफ़्त के अंगार में जलती जिंदगी


तलाश जिंदगी के अधूरा अधूरे।।


 


चार दिन की जिंदगी गुजर रही


दो दिन आरजू के दो दिन इम्तेहान 


जिन्दगीं इम्तेहान से आजिज इंसान


हासिल कुछ भी नहीं पुरे की चाह


लम्हा लम्हा कसमकस काश।


रह गया इंसान मलते मलते हाथ।


खोने औ पाने का हिसाब बराबर


पुरे की चाह में कट गयी जिंदगी


आधा गवां दिया पुरे की चाह 


में फिर भी रह गए अधूरे अधूरे।।


 


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर


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