काव्य रंगोली
निशा"अतुल्य"
सैलाब
16.7.2020
आँखों के सैलाब को ,
बांध दिया भीगी पलकों नें
कुछ तो तेरा मेरा सा है
एक दूजे का एक दूजे में ।
जीवन के संघर्षों का
कोई अंत नही होता है,
एक खत्म होता है जब तक
दूजा स्वयं ही आ जाता है ।
रुकना जीवन उद्देश्य नही है,
साँस सदा चलती रहती
ख़्वाब सुनहरे पलते रहते हैं,
चाहे पलकें भीगी रहती ।
नए सवेरे नित आतें हैं
रात सदा ढ़लती रहती
भीगी हो पलकें चाहे
आँख सदा हँसती रहती ।
स्वरचित
निशा"अतुल्य"
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