मन में धीरज धर
घपटे अंधियारी देख के
झन भरमा मन ला तोर
रात पहाही अऊ आही
बड सुग्घर अंजोर
साधना कर जीवन के
कलमस मार भगाबो
पाप ताप संताप ला मन के
धो धो मइल छुड़ाबो
घपटे अंधियारी देख के
झन भरमा मन ला तोर
रात पहाही अउ आही
बड सुग्घर अंजोर
काम क्रोध अउ तिसना के
आंख म पर्दा पड़े हे
इही दानो सेना मन हा
बुद्धि नाश करे हे
घपटे अंधियारी देख के
झन भरमा मन ला तोर
रात पहाही अउ आही
बड़ सुग्घर अंजोर
फुटहा करम ला संवारे के बात
कतेक नीक रही तोर मोर बर
दुःख सुख प्रेम मया के गोठ
भाग संवारे के कर ले कुछ उदीम
घपटे अंधियारी देख के
झन भरमा मन ला तोर
रात पहाही अउ आही
बड़ सुग्घर अंजोर
अन्याय अउ अत्याचार के संग
अब तो जम के लड़ना हे
त्यागन असमंजस दुविधा ला
नवा बिहनिया अवइया हे
घपटे अंधियारी देख के
झन भरमा मन ला तोर
रात पहाही अउ आही
बड़ सुग्घर अंजोर
नूतन लाल साहू
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