पूर्णिमा शर्मा अजमेर

सावन


 


  दिल झूमे रे गाय रे झूमे रे गाय रे


    देख नजारे ये सारे हा हा देख नजारे


     काली घटाए,बहती हवाएं, महकी फ़िज़ाए


       वर्षा का पानी सावन के धारे दिल झूमें रे


 तेरे ही आँगन में आँगन के सावन में


  दिल को लुभाने लगे हैं हमें ये दिल को


    इंद्र धनुषी फूल ये सारे कांटो सहारे


     मन को लुभाने लगे हैं हा रे मन को लुभाने 


  दूर क्षितिज में अंबर को देखो


   धरती को चूमे लगते हैं ये कितने प्यारे


      नील गगन से चंदा भी देखे


        नदियाँ को सागर के द्वारे


   दिल झूमें रे गाय रे झूमें रे गाय रे देख नज़ारे…


                                 


                                    स्वयं रचित


                            पूर्णिमा शर्मा अजमेर


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