पुष्कर शुक्ला बिसवां-सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

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          ""मनमोहक छवि""


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तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


मानो इंद्रधनुष की छायाकृति बनती हो घन में...


 


मानो कोई पुष्प सुशोभित होता हो उपवन में...


मानो वेद-सृजन करते हो ब्रह्मदेव लेखन में...


 


मानो अहि शीतलता के वश लिपटा हो चंदन में...


मानो पारस-मणी जड़ी हो युवती के कंगन में...


 


 


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


 


 


वपुकान्त तुम्हारा देख व्योम-उल्का स्तंभित हो जाता...


घन-शावक भी वर्षा करने को खुद प्रेरित हो जाता...


 


कर्प देव छविधाम देखकर सम्मोहित हो जाते...


मुख-मंडल की लालिमा देख मन-भानु उदित हो जाते...


 


*शमानो खुश्क समंदर में नव-जल संचित हो जाता...


सुंदरता वस ओर तेरे मन खुद प्रेषित हो जाता...


 


 


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


 


 


मुख-मंडल पर घन-केसों का दिखता है ऐसा पहरा...


विधु के ऊपर पूर्णिमा में घन-शावक का पहरा...


 


नयनों का सत्वर इंद्रजाल नयनों में ऐसे दमके...


मानो बरखा के घोर-तिमिर में चपला की रेखा चमके...


 


हल्की सी मुस्कान बिखरती रक्त-वर्ण स:अधर में...


मानो कुंज कली खिलती हो भोर-पहर पुष्कर में...


 


हृदय चित्त में छिपा हुआ वो प्रेम राज खुल जाता...


देख तुम्हें अलसाये मन को नवचेतन मिल जाता...


 


 


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में..


तुम्हें देख कुछ भाव अंकुरित होते हैं इस मन में...


 


✍🏻 "पुष्कर शुक्ला"


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