राजेंद्र रायपुरी।

सार छंद पर एक मुक्तक - -


 


डम-डम बम-बम डमरू बाजे,


                            बाबा जी के द्वारे।


नाच-कूदकर काॅ॑वरिया सब,


                           लगा रहे जयकारे।


रिमझिम-रिमझम सावन बरसे,


                            हवा चले पुरवाई।


फिर भी देखो भीड़ लगी है,


                            गंगा घाट किनारे।


 


            ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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