रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)

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                  कविता


 


              *मेरे गांव में*


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     संस्कारों की अनुपम संस्कृति,


     मनभावन प्यार लुटाती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सबका वो मान बढ़ाती ।।


 


     सब मिल आपस में रहते,


     शुद्ध भावना परोपकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     जय हो भारत माता की।।


 


     धरा पुत्र है शान हमारी,


     सैनिक सच्चा हितकारी।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     सब है सब आज्ञाकारी।।


 


     घी दूध दही की बातें,


     मनमोहक खुशबू आती।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     चटनी की याद सताती।।


 


     मां के हाथों की रोटी,


     छप्पन भोग सी लगती है।


     सुख ही सुख मेरे गांव में,


     छाछ राबड़ी बनती है।।


 


      पर्यावरण अपना साथी,


      डाल डाल पर पक्षी चहके।


      सुख ही सुख मेरे गांव में,


      हर घर हरियाली महके।।


 


      ©®


         रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)


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