आँखें
मेरी आँखों की ज्योति
तुमही आँखों का श्रृंगार
रहो सामने आँखों के
दे दो इतना सा उपहार
भर जाती हैं खुशियां
आँखें हो जाती खुशहाल
आँखों में पड़ती आँखें
मुझे लगता हुआ निहाल
जब दृष्टिपात होता है
झड़ते है आँखों से फूल
स्नेह की बारिश पाके
सारे गम जाता मैं भूल
छिपता न आँखों में
कटुता छिपी है या प्यार
आँखें नहीं सामान्य
है इनमें विस्तृत संसार।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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