गैरों को ज्ञान..........
यूं ही बने रहे अनाड़ी
खींचते रहे जिंदगी की गाड़ी
आँखें पथरा गईं मेरी
उन राहों को पाने के लिए
चलना चाहते अक्सर
जिन पर लोग कुछ पाने के लिए
पर हमें न मिली वह
सहज सरल समतल सी राह
निज जिंदगी की भांति
वक्रता लिए करती रहीं गुमराह
क्लिष्ट भी विशिष्ट भी
पल पल हमें भटकाती रहीं
न मुकाम न मंजिल
बिना लक्ष्य हमें चलाती रहीं
और हम है कि बेपथ हुए
न जाने कब से चले जा रहे हैं
खुद को कुछ मिला नहीं
गैरों को ज्ञान दिये जा रहे हैं।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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