पड़ी जो बूंद सावन में,
हमें फिर याद तुम आये।
तुम्हारे साथ गुजरे पल,
घुमड़ नयनों में फिर छाये।
उठी फिर चाह जीवन में,
हुई इक आह सी मन में।
खुले फिर पृष्ठ यादों के।
जगी फिर आस सावन में।
बही जलधार नैनन में,
हमें फिर याद तुम आये।
तुम्हारे साथ गुजरे पल,
घुमड़ नयनों में फिर छाये।
चमकती चंचला घन में,
खिले हैं फूल उपवन में।
निहारूं जब छटा अद्भुत,
तुम्हे देखूं मैं चितवन में।
सजा फिर स्वप्न जीवन में,
हमें फिर याद तुम आये।
तुम्हारे साथ गुजरे पल,
घुमड़ नयनों में फिर छाये।
लता है झूमती मधुवन,
कोकिला कंठ भीगा वन।
बरसती बूंद जब रिमझिम,
कहां हो तुम बुलाए मन।
जगी फिर भावना मन में,
हमें फिर याद तुम आये।
तुम्हारे साथ गुजरे पल,
घुमड़ नयनों में फिर छाये।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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