श्री राम चरित मानस कब और क्यों लिखी गयी

बलराम सिंह यादव धर्म एवं आध्यात्म शिक्षक


संबत सोरह सै एकतीसा।


 करउँ कथा हरि पद धरि सीसा।।


नौमी भौम बार मधुमासा।


अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।


 ।श्रीरामचरितमानस।


  अब मैं प्रभुश्री हरि जी के चरणों पर सिर रखकर सम्वत 1631 में इस कथा का प्रारम्भ करता हूँ।चैत्र मास की नवमी तिथि, मङ्गलवार को श्री अयोध्याधाम में यह चरित्र प्रकाशित हुआ।


।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।


  भावार्थः---


  श्रीरामचरितमानस की रचना का प्रारम्भ सम्वत 1631 में ही करने का मुख्य कारण यह है कि त्रेता युग में प्रभुश्री रामजी के जन्म के समय जो शुभ लक्षण थे,अर्थात योग,लग्न,ग्रह,वार और तिथि थे,वे सभी शुभ लक्षण सम्वत 1631 में श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ करने के समय थे।रामजन्म के समय की स्थिति का वर्णन करते हुए गो0जी लिखते हैं---


जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भये अनुकूल।


चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।।


नौमी तिथि मधुमास पुनीता।


सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।


मध्यदिवस अति सीत न घामा।


पावन काल लोक बिश्रामा।।


सीतल मंद सुरभि बह बाऊ।


हरषित सुर संतन मन चाऊ।।


बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा।


स्रवहिं सकल सरितामृतधारा।।


  श्रीरामचरितमानस की रचना के प्रारम्भ करने के पूर्व का उल्लेख श्रीवेणीमाधवजी ने अपने प्रसिद्ध ग्रँथ--गोसाईंचरित में विस्तार से किया है।इस ग्रँथ में यह कहा गया है कि सम्वत 1628 में गो0जी ने काशी में सर्वप्रथम रामगीतावली और बाद में कृष्णगीतावली की रचना की और इन्हें श्रीहनुमानजी को सुनाया।तब श्री हनुमानजी की आज्ञा लेकर वे अयोध्या के लिए चले।मार्ग में प्रयागराज में मकरस्नान हेतु रुके और वहीं उन्हें श्रीयाज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजी के सङ्गमतट पर दर्शन हुये और वहीं संवाद की अलौकिक घटना हुयी,तब हरिप्रेरित वे पुनः काशी आ गये और वहाँ संस्कृत भाषा में रामचरित की रचना करने लगे।वे दिन में जो रचते थे,वह रात्रि में लुप्त हो जाता था।तब आठवें दिन भगवान शिवजी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर अयोध्या में अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना करने का आदेश दिया।


अस कहि संभु भवानि अंतर्धान भये तुरत।


आपन भाग्य बखानि चले गोसाईं अवधपुर।।


(गोसाईं चरित)


  भगवान शिवजी की आज्ञा से गो0जी अयोध्या आये और बरगदिहा बाग में ठहरे,जिसे अब तुलसीचौरा कहते हैं।यहीं लगभग दो वर्षों तक दृढ़ नियम संयम का पालन करते हुए एकही समय दुग्ध पान करते रहने के बाद गो0जी ने सम्वत 1631 में श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की।


वेणीमाधवजी ने लिखा है--पय पान करैं सोउ एक समय।


रघुबीर भरोस न काछुक भय।।


दुइ बत्सर बीते न वृत्ति डिगो।


इकतीस को सम्बत आइ लगो।।


और इस प्रकार दो वर्ष सात माह छब्बीस दिन में सम्वत 1633 में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि को रामविवाह के दिन इस महाकाव्य की रचना पूर्ण हुई।


  प्रभुश्री रामजी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर प्रारम्भ होकर रामविवाह के दिन पूर्ण होने वाले इस ग्रँथ का महत्व व इसकी प्रसिद्धि होनी स्वाभाविक ही है।


 यह श्रीरामचरितमानस मुनियों को प्रिय है।इस सुहावने व पवित्र मानस की रचना भगवान शिवजी ने ही की थी जिसे गो0जी ने भाषाबद्ध किया।यह तीनों प्रकार के दोषों, दुःखों और दरिद्रता को नष्ट करने वाला और कलियुग की कुचालों और समस्त पापों का नाश करने वाला है।यथा,,,


रामचरितमानसमुनिभावन।


बिरचेउ संभु सुहावन पावन।।


त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन।


कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।।


।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।


।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


बलराम सिंह यादव धर्म एवं आध्यात्म शिक्षक 


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