श्रेया कुमार नई दिल्ली

प्रेम गीत


"नज़र जो मिली उनकी नज़रों से"


@श्रेया कुमार


 


नज़र यू उठी उनकी ओर की जमाने की नजरों से,


यह नजरें चुपके से उनकी नजरों को 


निहार आई....


शिकवे थे ,बहुत शिकायतें भी थी बहुत....


पर जब देखा उनकी ओर तो उनकी भी नजरें हमारी ओर ही थी....


यु टकरा आई नज़रें....


 नज़रों से...


जैसे" समुद्र की लहरें" से टकराकर फिर शांत हो गई हो.....


 


मुस्कुराहट थी ....यू लबों पर


जैसे "नदी मिल आई हो समुंदर "से


जमाने की नजरों से चुरा कर....


यू उनसे आज नजरे मिल आई,


जैसे उनकी नज़रें भी कुछ कह रही हो मेरी नज़रों से....


"खामोशियां थी ,बहुत...


शोर कर रही थी जैसे" विरान- खंडहरों" में 


"कौतुहलता बहुत थी," हृदय "में 


धड़क-धड़क कर रही थी ...


नज़र जो मिली उनसे...


"गुनहगार -सी "हो गई थी यह... नजरें


निकल पड़ी.. नजरों से " आंसू "रूपी "मोती "बनकर..


"शिकायतें" बहुत थी... उनसे


यूं बहकी ...आज नजरें..


"मंदिरा -भरा, प्याला आंखों में..


"मद- मदमाती" नशे सी झूम गई..


क्योंकि


" मेरी नजरें उनकी नजरों से जो मिल गई"........


श्रेया कुमार


नई दिल्ली


मिलनसार अपार्टमेंट


प्रकाशन हेतु रचना


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