कविता:-
*"मैं"*
"मिलता पग-पग जो मुझसे,
हँस कर उससे मिलता मैं।
मैं न मेरा मुझमें साथी,
क्या-कहूँ यहाँ तुमसे मैं?
पा लेता मंज़िल जग में,
जहाँ न बसता मुझमें मैं।
स्वार्थहीन होता जीवन,
परिचित न होता मेरा मैं।।
मैं-ही-मै है-संग मेरे,
छोड़ सका न जग में मैं।
मिलकर भी न मिला उनसे,
संग जो रहा मेरे मैं।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 18-07-2020
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