थे जागे रात भर सोने न पाए।
किसी की याद थी रोने न पाए।
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जलाया दीप हमने तो वफ़ा का।
रखा बस ध्यान ये बुझने न पाए।
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कई रातें दिनों तक जागते थे।
अंधेरों को मगर धोने न पाए।
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उन्हीं के साथ चलते हर कदम थे।
कदम इक उनके बिन चलने न पाए।
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बताना चाहते थे बात दिल की।
हुआ जब सामना कहने न पाए।
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कसक दिल में उठी रोना भी चाहा।
जहाँ का सोचकर रोने न पाए।
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सुनीता असीम
१८/७/२०२०
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