सुनीता असीम

इस तन को नश्वर कहते हैं।


पत्थर को ईश्वर कहते हैं।


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राह दिखाए हमको सच्ची।


उसको ही रहबर कहते हैं।


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संभलो तुम जग के झंझट से।


ऐसा दानिश-वर कहते हैं।


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आग दिखे तो पानी बोलें।


कुछ भी दीदा-वर कहते हैं। 


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औरों का वो दुख क्या समझे।


जिसको सब पत्थर कहते हैं।


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 कुछ भी कर लो जल्दी कर लो।


कुछ बैठे सर -पर कहते हैं।


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 पहले अनदेखी हैं करते।


संभलेंगे लुटकर कहते हैं।


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 मंदिर जैसा जो है लगता ।


उसको ही तो घर कहते हैं।


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सुनीता असीम


११/७/२०२०


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