सुनीता असीम

वो चाँद प्यार बड़ा चाँदनी से करता है।


न उतना आदमी भी ज़िन्दगी से करता है।


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घड़ी घड़ी मैं तुझे माँगता था दिलबर।


मगर तू इश्क बड़ी सादगी से करता है।


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कि कल तलक जिसे परवाह भी नहीं थी मेरी।


दिया सदा वो मुझे शायरी से करता है।


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किया करे था खुशी से कभी मेरी खातिर।


वो मेजबानी मेरी आजिज़ी से करता है।


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मुझे जो देख गया भूल नाम जाने का।


वो याद भी मुझे तो दिल्लगी से करता है।


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सुनीता असीम


 


१६/७/२०२०


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