द्वादश ज्योतिर्लिंग वन्दना की श्रंखला में
--- चतुर्थ ---
चौथा ज्योतिर्लिंग शम्भु का पवित्र नर्मदा के तट पर।
ओंकारेश्वर के स्वरूप में प्रगट हुए शिव गौरीशंकर।
दो भागों में बंट गई यहां इस पावन सरिता की धारा।
मान्धाता पर्वत शम्भु पुरी कहलाया यह टापू सारा।
शिव जी का तप ओंम मन्त्र से मान्धाता ने इस तट पर।
ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटे गौरीपति श्री ओंकारेश्वर।
पावन ज्योतिर्लिंग स्वयंभू पर्वत सारा शिव रूप यहां।
शिवपुरी नाम भी है इसका ज्योतिर्लिंगम् दो रूप यहां।
दो रूप एक ज्योतिर्लिंगम् दूजा स्वरूप श्री अमलेश्वर।
नदी नर्मदा के दक्षिण तट ओंकारेश्वर से कुछ हटकर।
स्नान नर्मदा सरिता पावन दरशन पूजन शुभ फल दायक।
पार उतारे भवसागर के सत्पुरुषों का सदा सहायक।
चरण कमल रज शीश धरूं नित पूजूं तुम्हें सदा निष्काम।
हे शिव शंकर हे गंगाधर हे गौरी पति तुम्हें प्रणाम।
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