सुरेंद्र सैनी टोहाना फतेहाबाद हरियाणा

125120)


 कविता 1


रंग मेरे देश के,,,


 


कोरोना की इस जंग में मैंने


अमीरों को उड़ते हुय यान में देखा।


वही गरीब को खुले आसमान देखा।


व्यापारी की होशियारी देखी,,,


किसान की दिलदारी देखी,,।।


 


नेतायों के लारे देखे,,,


सड़को पर पिटते भूख के मारे,,


गरीब देश के सारे देखे,,


लोकडाउन में देश को देखा


समाज के बदले हुय परिवेश को देखा।।


 


मतदान से जो बदले सरकार


आम जनता धक्के खाती देखी


Nri जो बैठे विदेश में,,


सरकार उन्हें यान में लाती देखी।


गरीब मजदूर की मजबूरी देखी


राज्यों की नपती दूरी देखी।।


 


लोकडाउन में करोड़ों देखे


क्वारन्टीन में लाखों देखे


बन्द के बंद बाजार भी देखें।


पुलिस डॉ की डयूटी देखी।


गरीब की किस्मत फूटी देखी।।


 


बन्द देश की रेल भी देखी


भारत का भाईचारा भी देखा


India का इम्तिहान भी देखा


दानियों का दान भी देखा।


भूख से मरता इंसान भी देखा।।


 


लाला की कालाबाजारी,,,


महंगे दाम बेचे चीज जो सारी


मोदी की दूरदर्शिता दिखी।


मानवता कही तरसती दिखी


अमीर गरीब का भेद दिखा


सरकारों का अपना खेल दिखा।।


             ( कवि सुरेंद्र सैनी)


 


 कविता 2


      भाई


जब भाई का हो 


कांधे पे हाथ


कैसी भी बिगड़ी हो 


बन जाती है बात


एक दोस्त के 


माफिक होता है भाई


सलाहकार अनुज अग्रज,,


 


कितनी भी हो


जीवन में निराशा


भाई ही भाई के


काम है आता


 


भाइयों के बिन


परिवार अधूरा


भाई की मौजूदगी से 


जो होता है पूरा


कितनी भी हो


उनमे  में पटी खाई


दिल से दूर न होता भाई


      सुरेंदर सैनी,,,,,,


 


कविता 3


पापी पेट


 


लेकर पापी पेट


वो घूम रहा है सड़को पर


पैदल चल चलकर 


फट गई है एड़ियां


सर पर बोझा


खाली पेट माप रहा है


देश की सड़कों की लम्बाई।।


 


भोजन की व्यवस्था न 


साधन की सुविधा,,


कोरोना की बीमारी में


वो सबसे अभागा,,


मेरे देश का वो ही


नन्हा शिल्पकार


जिसने कितनी ही ईमारतों


को सींचा है अपने खून पसीने से।।


 


सरकार के मिले आश्वासन का


जो पी गया प्याला,,उसके हिस्से


की नेतायों ने खाई खूब खीर


उसे मिली तो बस सड़को की 


वीरान राते और पुलिस की


लाठियों की सौगात


मिली तो केवल खाली लकीर


मेरे देश का वो अभागा मजदूर।।


 


सवाल पापी पेट का 


जो इतने जुल्म सह रहा है


मजबूर अपने हालातों से


न सच किसी से कह रहा है।


हुक्मरानों जरा जाग जायो


और न उसको तुम रुलायो।।


 


हजारो मील जो माप सकता है


मेहनत से मुश्किलों को काट सकता है।


आ गया जो अपनी आई पर,,,


फिर खुद लिखेगा वो अपनी तक़दीर


क्रोदित हुआ जो उसका जमीर,,,


सड़को पर अभागा,, क्यों खाये धक्के


मेरे देश का निर्माता वो 


बना जो आज फकीर,,,।।


 


कविता 4


मयखाना 


गम ओर तनाव में 


खुशी के मिजाज में 


हर पल जो साथ निभाये 


एक ही साथी नजर आये


मेरा प्यारा मयखाना ।।


 


दुनिया की भीड से ज्यादा 


अकेलेपन में साथ निभाये 


दुख दर्द मेरा करता साँझा 


मुझे जो धीर बंधाये,,, 


वो दोस्त है मेरा मयखाना ।।


 


दुखी लोगों का मरहम 


ओर खुशियो की दुकान 


झूठ से दूर वह सच की जुबा 


अनगिनत कहानियो का सन्ग्ग्र्ह 


हजारो गजलो का सामान 


मेरा प्यारा मयखाना ।।


 


जाती धर्म का करे भेद ना 


सबको अपनी शरण है देता 


अमीर गरीब वो सबका साथी 


टूटे दिलो की दवा का नाम 


एक ही केवल मयखाना ,,,।।


   ( कवि सुरेंद्र सैनी)


 


कविता 5


        मेरी ताकत


मेरे आंगन का शोर हो तुम


काली रात का भोर हो तुम 


जब भी मैं हो जाऊं निर्बल 


मेरी ताकत और ज़ोर हो तुम।।


 


विश्वास हो तुम जुनून हो तुम 


तुम बिन आंगन हो जाए सूना सूना 


खिलते कमल का फूल हो तुम


पग-पग जब भी आए मुश्किल 


मेरे आत्मविश्वास का शोर हो तुम।।


 


जमाने की इस भीड़ से हटकर 


मेरा चेन और सुकून हो तुम 


सफलता आई जब इन कंधों पर 


संभालने वाली कोर हो तुम।।


 


मेरे  कंधों का जोर हो तुम 


टूट कर बिखरा जब हताश मैं


  संभालने वाली डोर हो तुम


मेरा प्यार,उमंग जुनून हो तुम


मेरी ताकत और मेरा जोर हो तुम,,,,,                 


 (सुरेंद्र सैनी)


 


 


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