सुषमा दीक्षित शुक्ला

फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती।


 


 पाकीज़गी प्यार की बेखुदा नहीं होती ।


 


है अगर कशिशे मोहब्बत रूह की।


 


 तो बाखूदा ये गुमशुदा नहीं होती।


 


 जंग ए उल्फत में अगर हार हो मुमकिन।


 


 इससे बेहतर तो इश्क की अदा नहीं होती ।


 


प्यार की राह में अगर मौत भी आए ।


 


 इससे प्यारी तो यार की कदा नहीं होती ।


 


फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती ।


 


पाकीज़गी प्यार की बेखुदा नहीं होती ।


 


हो हासिले इश्क ,नहीं मुमकिन हरदम ।


 


 सुलह जज्बात से करके संभल जा ऐ ! दिल।


 


 टूटते दिल में वैसे भी कोई सदा नहीं होती।


 


 फूल से खुशबू कभी जुदा नहीं होती ।


 


पाकीज़गी की प्यार की बेख़ुदा नहीं होती ।


 



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511